पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१४७

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नई बात की चाह लोगों में क्यों होती है १४७ कला, सभ्यता विविध विज्ञान और भिन्न प्रकार के दर्शन शास्त्रों में जो-जो तरकियां भारत, यूनान तथा रोम ने किया था वह भापान्तर हो अब तक कायम है | जो बात एक बार ईजाद एक मुल्क में होती है उसका उसूल कहीं नही जाता | वृक्ष के समान एक भूमि से उठाय दूसरी मे अलबत्ता लगाया जाता है और उस पृथ्वी में नया मालूम होने के कारण वहाँ बड़ी चाह से ग्रहण किया जाता है। जैसा वृक्ष के सम्बन्ध में है कि कोई कोई वृक्ष किसी-किसी पृथ्वी में वहाँ का जलवायु अपने अनुकूल पाय वहाँ खूब ही फवकता है वैसा ही विद्या, कला, दर्शन आदि भी देश की स्थिति और जन वायु की अनुकूलता के अनुसार वहाँ विस्तार को पाते हैं । अभाग से भारत की स्थिति और यहाँ का जल वायु दर्शन और कविता के अनुकूल हुये यहाँ दर्शन और कविता की जो कुछ उन्नति हुई वह किसी देश मे न की गई। यूरोप की पृथ्वी शिल्प और विज्ञान के अनुकूल हुई वहाँ के साहसी और उद्यमी लोगों ने इन दोनो में जो कुछ तरक्की किया उसे देख हम सब लोग दंग होते हैं और यूरोप निवासियों को दैवी-शक्ति. संपन्न मान रहे हैं। पर यह रमरण रहे कि जो कुछ उन्नति शिल्पविज्ञान में भारत तथा यूनान और रोम ने किया था वह इतनी अल्प थी कि केवल अंकुर या बीज रूप उसे कह सकते हैं अब इस समय शतगुण अधिक पहले से वहाँ देखी जाती है तो यह सिद्ध हुआ कि दुनिया दिन दिन तरक्की कर रही है और इस तरकी की बुनियाद सदा नई बात की चाह है। हिन्दू धर्म और रीति-नीति अब इस समय घिन के लायक हो रही है सो इसी लिये कि इसका नयापन बिलकुल सो गया। पुराने समय के माहाण जिन्होंने यहाँ की रीति-नीत प्रचलित किया यद्यपि स्वार्थी श्रीर लालची ये पर इतनी अभिल उनमें थी कि जब कोई रीति नीति या मजहर के उसूल विरकुल पुराने पर जाते थे और यह स्माते ये कि प्रजा की गचि इस पर से हटने लगी जरद उसे अदल बदल कर नई