२-बोध, मनोयोग और युक्ति . 6 किसी वस्तु के देखने सुनने छूने चखने व सूंघने से जो एक प्रकार का ज्ञान होता है उसे बोध (फीलिंग पार सेन्सेशन' कहते हैं, परन्तु यथार्थ मे केवल बोध से शन नहीं होता, प्रकृत-ज्ञान (परसेप्सन) बोध और साधारण ज्ञान दोनों मिल के होता है और वह प्रकृत-ज्ञान बोध तुम्हे कितना ही हो विना मनो योग के नही होता, अतएव केवल बोध मे मन अस्थिर रहता है और ज्ञान जो मनो योग के द्वारा होता है उसमे स्थिर रहता है। जैसे घड़ी जो आठो पहर बजा करती है उसे कभी हम सुनते है कभी नही सुनते, पास धरी हुई घड़ी का शब्द सुनने का कारण वही अमनोयोग है जिसके बजने का बोध तो सबी अवस्था से हुआ करता है पर उसके शब्द का ज्ञान अर्थात् घड़ी मे कै बजा इसका ज्ञान हमे तभी होता है जब हम दत्तावधान हो मन का सयोग उसके बजने मे करते हैं। यह थोड़ा सा वर्णन दार्शनिक बोध का यहाँ किया गया; अब लोक मे बोध और प्रकृत-जान (परसेप्सन) किस प्रकार होता है और क्या उसका परिमाण है सो देखाते हैं । पहिले हमने देखा कि यह बालक बड़ा सुन्दर और हँसमुख है। देखते ही उसकी प्रशंसा करने लगे चाहे यह प्रशसा मन ही मन हो या प्रगट मे हो। प्रशसा करते करते उस बालक पर स्नेह का भाव उत्पन्न हुआ तो यहाँ बालक को पहले देखने को हम बांध । सेनेसेशन) कहेंगे और उस पर जो स्नेह का होना सो मानो प्रकृत-ज्ञान (परसेप्सन) कहलाया। सौन्दर्य प्रेम का प्रधान कारण ठहरा परन्तु उस प्रेम मे यदि किसी कारण भय आदि का ससर्ग न आ गया हो तो । सिंह मनोहर जन्तु है सही
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१३
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