३०-कौतुक जिस बात को देख या सुन चित्त चमत्कृतं हो सब ओर से खिंच सहसा उस देखी या सुनी बात की ओर झुक पड़े वह कौतुक है । यह अद्भुत नाम का नौ रसो में एक रस है । गम्भीराशय बुद्धिमानों को कभी किसी बात का कौतुक होता ही नहीं या उनके लेखे यह सपूर्ण ससार केवल कौतुक रूप है जिसमे मनुष्य का जीवन तो महाकौतुक है :- अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् । शेषाजीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥ नित्य-नित्य लोग काल से कवलित् हो प्रतिक्षण यममन्दिर की यात्रा का प्रस्थान रक्खे हुए भी जीने की सभी इच्छा करते हैं इससे बढ़ कर कौतुक और क्या होगा। सच है श्राधि-व्याधि-जराजीर्ण-कलेवर का क्या ठिकाना? कच्चे धागे के समान दम एकदम मे उखड़ जा सकता है मानो सूत का बंधा हाँथी चल रहा है । तब हमको अपने जीने का जो इतना अभिमान या फक्र और नाज़ है सो तअज्जुब तो हई है। तत्वविद इस बड़े तमाशे को देख कर भी कुछ क्षुभित नहीं होते और सदा एक से स्थिर-चित रहते हैं तब छोटे-छोटे हादसे उनके लिये कौन बड़ी बात है ? अथवा जब कभी ऐसे लोगों का चित्त कौतुक-श्राविष्ट हुआ तो साधारण लोगो के समान उनका कौतुकी होना व्यर्थ नहीं होता। हम लोग दिन में सैकड़ों बाते कौतुक की देखा करते हैं पर उससे कभी कोई बड़ा फाइदा नहीं उठाते । गेलिलियो का एक बार कौतुकी होना बड़े-बड़े साइन्स की बुनियाद डालने वाला आकर्षण शक्ति (अट्रेक्शन ऑफ ग्रेवीटेशन) के ईजाद का वायस हुआ । ऊपर से नीचे की पदार्थ गिरते ही रहते हैं जिसे देख कभी किसी को कुछ अचरज नहीं होता किन्तु बारा में बैठे हुये गैलिलियो को मेव का पक्का फल पेड़ से नीचे गिरते देस खटक पैदा हो गई और उसी क्षण से इन के मनमें तर्क-
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