पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/११९

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नई वस्तु की खोज के और विदेशीय लोगों के सम्बन्ध को, कहाँ तक गिनावे देश के देश की दशा को कुछ अनोखे नये साँचे में ढाल डाला है। और आशा है कि समाज की पुष्टता के साथ ही साथ इस ढांचे के रूप रंग और और भी दिन प्रति दिन एच-पेचदार होता जायगा। और सब बातों को अलग रख छापने ही को लीजिये जिसने-लोगों के लिखावट का ढंग ही और का और कर डाला। नये नये विषयों की हजारो किताबे और पुस्तके निकल चुकी हैं फिर भी लोगों को प्रत्येक विषय के नये नये प्रस्ताव पढ़ने की इच्छा शान्त नहीं होती। शान्त होने की कौन कहे बरन् बढ़ती ही जाती है, क्योंकि यह शिकायत बहुधा लोगों के मुंह से सुनने में आती है कि कोई नई किताब होती तो पढ़ते। हम लोगों ने चोटीले से चोटीला प्रस्ताव लिख लिख दिमाग पिच्ची कर डाला फिर भी पाठकों को फड़कते हुये मज़मून का पार्टकिल पढने की इच्छा शान्त न हुई। अस्तु, हम प्रस्तुत का अनुसरण कर नये नये धन्धों का हाल लिखते हैं । इसे सब लोग मानते हैं कि जो लड़का ताश, शतरंज या चौसर खेला करता है वह समाज में बड़ा आवारा और निकम्मा समझा जाता है । हमने पेरिस के कुछ लोगों का हाल पढा है कि रोज़ सुबह उठ कर एक तशतरी मे खेल के सब सामान रक्खे हुये (जैसा दो चार गड्डी ताश, शतरज की विसात और मोहरे आदि) बाजार मे घूमते हैं। बेकार अमीर लोग उन को अपने घर बोलाते हैं; उनके खेल की शरह है जैसा दो घटे का पाँच रुपया. जो लोग उनको बुलाते हैं वे इसी हिसाब से देते हैं; वे लोग अमीरों के खेलने के वक्त हॅसी के किस्सों से खेलने वालों का दिल बहलाया करते हैं । आपने नौवाबों के "दस्तर खान के विल्लों" यानी मुक्त खोरों का हाल सुना होगा परन्तु इन पेरिस के मसखरी के टक्कर के लोग शायद हिन्दुस्तान मे न निकलेगे। जिन्होंने साधारण खेल कूद में आमदनी की एक ऐसी सूरत अपने लिये निकाल लिया है कि जितनी आमदनी इस देश में बड़ी मेहनत के साथ दिमाग पिच्ची करने