मनुष्य तथा वनस्पतियों में समानता ११५ . . बोलक लड़काई में जैसा रहता है बड़े होने पर उसकी वह भली या दुरी तबियत भलाई या बुराई में अधिक प्रबल पड़ जाती है । नो बालक लड़काई में क्रोधी, कृपण या नीची तवियत का है बड़े होने पर कितनी उत्तम शिक्षा के होने पर भी क्रोध कृपणता या नीच स्वभाव में वह बढता जाता है और अामरणान्त वैसा ही बना रहता है। जो बालक लड़काई में सीधा, सरल स्वभाव, उदार चित, शान्त, सहनशील, है वह बड़ा होने पर चाहो बिलकुल पढाया लिखाया न जाय तौभी सीधाई, औदार्य और तितिक्षा आदि गुणों मे बढता ही जायगा। अधिकतर तो ये गुण ऐगुण माँ बाप के रजवीर्य के अनुसार होते हैं; वैसा ही जैसा जो कड़ये दाने के वृक्ष हैं उनका फल मीठा नहीं हो सकता न मीठे दाने के पेड़ों के कड्डये फल फल सकते हैं । लड़के का शील-स्वभाव, चाल-चलन और वर्ताव देख हम उसके माँ बाप के शीज- स्वभाव, चाल-चलन बर्ताव आदि को जान सकते हैं। ऐसे ही बाप ने जो मलाई या बुराई की है वह उसकी सन्तान पर उतरती है इसी से यह कहावत है "बाढ़े पुत्र पिता के धर्म"। मनु ने भी ऐसा ही कहा है :- "यदि नारमनि पुत्रेषु नच पुत्रेषु नसृषु नत्वेवं चरितो धर्मः कर्तुर्भवति नान्यथा ॥" मनुष्य जो भलाई या बुराई करता है उसको उस बुराई या भलाई का फल यही इसी जन्म में मिल जाता है कदाचित् न मिला तो लड़कों में उसका फल देखा जाता है। लडकों में किसी कारण न भी भया तो पोते या नातियों मे तो अवश्य बुराई या भलाई का परिणाम होता ही है कभी व्यर्थ जाता ही नहीं। बुद्धिमानी ने इसी से यह सिद्धान्त कर रस्सा है कि बहू जो अपने घर में आवै वह बहुत ही ऊँचे घराने और समारिन मां बाप की रो; क्योंकि धागे को औलाद का सुधार या 'मिगाई इसी पर निर्भर है। यहाँ पर वृक्ष के सम्बन्ध में एक बात रही
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/११५
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