ग्राम्य जीवन कहा भी है:- "तरुणं सशंपशाको नवनीत धृतं पिच्छलागि दधीनि । अल्पव्ययेन सुन्दरि ग्रामीण जनो मिष्ट मनाति" । हरा-हरा सरसों का साग तुर्त का मथा मक्खन, हींग और जीरा मे बघारी हुई भैस की पनौली दही से जैसा गांव के रहने वालों को मधुर स्वादिष्ठ भोजन सब भांत सुगम है वैसा नगर के धनियों को भी बहुत सा खर्च करने पर मयस्सर नहीं है। इससे भैया तुम्हारा जीवन सफल है । संसार का सच्चा सुख तुम्हारे ही बाट मे श्रा पड़ा है। नई सभ्यता का नाम तक आपने न सुना होगा ? न नई सभ्यता का विपाक प्लेग और हैज़ा के कारण खाना बदोशों की भांत घर छोड़ दर-दर तुम घूमते फिरे होगे ? यमराज सहोदर कोट पेट धारी डाक्टरों का मुख भी आप को कभी देखना नहीं पड़ता। मेलीरिया ज्वर जनित पीड़ा निवार- णार्थ कुनइन कभी तुम्हें नहीं ढूंढना पड़ता । न हर महीने दवा खाने की बिल आप को अदा करना पड़ता है। टटके स्वच्छ खाद्य वा पेय- 'पदार्थों का भोग पहले आप लगा लेते हो तब महीनों के उपरान्त नीरस पदार्थ हमे मिलते हैं। हे अग्ररस भोक्ता तुम्हे नमस्कार है। गौराग महा प्रभुत्रों का कभी साल भर मे भी एक बार तुम्हे मुख नहीं देखना पड़ता । हम नित्य उनका चपेटा घात सहा करते हैं । हे अन्नपूर्णा देवी के अनन्य भक्त, हे शान्ति के सहकारी जन, हे स्वास्थ्य के सहोदर, आप न होते तो महामारी के विकराल अजगर के मुख से हमें कौन छुड़ा लाता। तुम्हारी ग्राम्य युवतियों की स्वाभाविक लजा नागरिक ललनात्रों के बनावटी परदों मे कहीं ढूढने पर मिले या न मिले। तुम्हारी समग्र सम्पत्ति का सार भूत पदार्थ गोधन अर्थात् गाय, बैल, भैंस, छेरी, मेड़ी इत्यादि है । गोधन संपन्न किसान छोटे-मोटे जमीदारों को भी कुछ माल नहीं समझता। कवि कुल मुकुट भहि ने भी लिखा है :-
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१११
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