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भट्ट निबन्धावली
करता है। उसी राशि चक्र में बंधे हुये सूर्यादिग्रह अपनी अपनी निय- मित कक्षा पर नियमित चाल से चला करते हैं।
"भूचक्रं ध्रुवयोर्नद्व माक्षिप्तं प्रवहानिलै:।
पर्यात्यजस्त्रं तन्नद्वग्रहकक्षा यथा क्रमः"॥
सिद्धान्त शिरोमणि मे लिखा है पृथिवी के बाहर बारह योजन तक जो वायु है उसी मे मेघ और विद्युत् रहते हैं उपरान्त प्रवह नाम का वायु है और उसकी गति सदा पश्चिमाभिमुख रहती है उसी में ग्रह और नक्षत्र सब हैं। वामन पुराण में सात प्रकार का वायु लिखा है वही मरुत् के गण हैं। जिनके नाम ये हैं प्रवह, निवह, उद्वह, संवह, विवह, प्रवाह, परिवह। इन्द्र ने इन सातों वायु का आकाश मे पथ- विभाग निश्चित कर दिया है। पुराण मे ही मरुत् के गण कहे गये हैं। ये मरुदगण क्या है सो फिर कभी लिखैंगे।
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