२३ चढ़ती उमर नमूना होते हैं। साधु जन ऐम ही का सत्कार करते हैं, कुटुम्ब के लोग भी उसी का बादर करते हैं, विद्वन्पण्डली उसको अपना अग्रसर मानती है, चापलूस मुफ्तखोरे खोटे लोग उसे देख शरमाते हैं, मुंह छिपाते है, उससे आँख मिलाने की हिम्मत नहीं बांधते,धूतं प्रतारक वंचक वक्रवृत्तियों की कोई कता उसके सामने नहीं लहती। इसपे सन्देह नहीं, यह उमर एक कसौटी है । जो इसमे कसे जाने से खरा निकल गया वह उमर के बढ़ने पर अपने चार चरित्र में चारुदत्त का नमूना बनता है । नाचे का यह श्लोक ऐसो ही के उदार चरित्र का दने वाला है- उपरि करबालधाराः क्राः सः भुजंगापुंगवः ।। अन्तः साक्षादक्षा दीक्षागुगुरवो जयन्ति देपि जनाः ।। यह लेख हमने केवल नई उमर वालों के उद्देश्य से लिखा है। आशा है, इसे ध्यान दे वे लोग पढेंगे तो अवश्य उनको एक प्रकार की चेतावनी होगी। नई उमर में जो बहुत से दोष मनुष्य मे आ जाते हैं उनसे बचेंगे और समाज तथा अपने भी कल्याण-साधन मे अग्रसर होंगे। जुलाई १८९७
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