- १७-कर्णामृत तथा कर्णकटु । कितने शब्द या वाक्य ऐसे होते हैं जो कर्ण-कुहर के द्वारा मन में पहुँच एक अद्भुत अानन्द उपजाते हैं। उदासीन और विरक्त के - ' चित्त में भी असर पैदा कर देते हैं । जो कान में पहुंचते ही उदासीन की सबै उदासी को सूर्य के उदय में घने अन्धकार की भाति न जानिये किस खोह में जा छिपा देता है। विरक्त और त्यागी सब वैराग्य और त्याग भूल विषय वासना के लासे में फंस पखेरू-सा फिर इस बड़े पिजड़े संसार में श्रा पड़ता है, जहाँ से यह पहले तीव्र वैराग्य पंख के । उगाने पर उड़ भागा था। इसी के विरुद्ध कितने ऐसे अरुन्तुद मर्मस्पृक् कर्कश कठोर शब्द होते हैं जो कर्ण-पुट को बेध हृदय-कपाट को सहसा उद्घाटन करते मन में वेकली पैदा कर देते हैं । शान्त-शील मुलि की भी शान्ति में बट्टा लगाते हैं। आग में बारूद पड़ने की भांति क्रोध एकवारगी भड़का देते हैं । नहूसत पैदा करते हुये होनहार कोई, बड़े अमंगल के सूचक है।. .. . . कर्णामृत जैसा-छोटे बालकों की तोतरी बोल, प्रेमपात्र का प्रेमा- लाप, जिसके आगे कोकिलाओं का कुहूनाद भी फीका मालूम होता है, और भी वर्षा के प्रारम्भ मे चातक की पीहो-पीहो, भोर होते ही पंचम । स्वर की लय में वृक्षों पर चिड़ियों की चहचहाहट-सेवक के काम से निहाल और प्रसन्न स्वामी का सेवक की सराहना--पति परदेश गया है साध्वी पतिव्रता तन छीन-मन मलीन बड़े लोगों की लाज से अपने मन के भावों को छिपाती किनी तरह. दिन काट रही है। अकस्मात् एक दिन डाकिये ने श्राय एक पत्र दिया जिसमें प्राणनाथ के दो ही एक दिन आने का शुभ समाचार दिया है, कर्ण-रसायन उन अक्षरों को सुन पति के वियोग में ग्रीष्म के सूर्य के खर तर ताप से तपी लता
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