नाम में नई कल्पना - कुलवन्ती और वेश्याओं के नाम मे कोई अन्तर नहीं रहता। बनारस में जानकी, सरस्वती, लक्ष्मी, कमला श्रादि नाम वेश्याओं के हैं। मुसलमानों को हम अपने से हेठा समझते हैं, पर नाम धराने मे वे हमसे कितना अच्छे हैं । फातिमा, आयशा, जैनव, मरियम आदि देवियों के नाम वेश्याओं के न पाओगे। वंगदेशियों की मांति चन्द्र- भामा, विलासिनी, कामिनी, मोहनी, उन्मादिनी, स्वर्णलता, मालती, कामधुरा, वसन्तसेना, पिकबैनी, मेनका, तिलोत्तमा आदि रक्खे जाय ता कौन-सी हानि, पर गृहस्थ और भले मानुषों को जब इसका ख्याल नहीं तो वेश्याओं को क्यों हो ? कितने मुखन्नस नाम न जानिये किस उसूल पर रक्खे जाते हैं, न नर न मादा, जैमे राधाकृष्ण, सीताराम, गौरीशकर इत्यादि । इस तरह के नामवालों को क्या समझे १ नी या पुरुष दोनों एक साथ हो नहीं सकते। कितने अपने नाम मे प्राधे हिन्दू हैं, आधे मुसलमान जैसे रामगुलाम, रामबख्श, कुंवरबहादुर । कितने जन्मे तो हिन्दू के घर पर नाम से मुसलमान ही रहे, जैसे राय- बहादुर, अमीर बहादुर, नवाब बहादुर, बख्तवहादुर । हमारे कायस्थ महाशयों में इस तरह के यवन-सम्पर्क-दूषित नाम बहुत मिलते हैं। ___ भक्ति की भावना ने भी हम लोगों के नामों की खूब ही खाक उड़ाई है। अपने इष्ट-देव के नाम के अन्त में दीन या दास का पद लगा दिया जाता है । न जानिये किस जून कैसी सरस्वती मुख से निकल पड़ती है। कहते-कहते अन्त मे दीन और दास हो हो तो गये। काम में दास तो नान मे क्यो न हों ? महेन्द्र, उपेन्द्र, सुरेन्द्र, ब्रजेन्द्र, नरेन्द्र श्रादि प्रभुताशाली नाम क्यों रखाये जाय १ दासत्व तो नस-नस में समाना है । मनु ने दासान्त नाम शुद्र और हीन जाति के लिये कहा है। चारूदत्त, विष्णुमित्र, भूरिश्रवा, यज्ञदत्त, सुमति, सत्यमेन, काम- । पाल नाम तो अब सपने के खयाल हो गये। अब तो- "धोबी के घर धरमदास है याम्हन पुत मदारी"
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