पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/६६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

· भट्ट-निबंधावली कोई कहता है, हम तो सदा ताजा पानी पीते हैं और इसके सैकड़ों फायदा बतलाता है। दूसरे कहते हैं हम तो जाड़े में भी ठंढा पानी पीते हैं और गरमियों में तो बिना वर्फ प्यास बुझती ही नहीं। इतने मे एक अँगरेजी पढ़े वहाँ बैठे थे, बोले-आपको मालूम नहीं, कितने निहायत वारीक नीड़े पानी में रहते हैं । इसलिये इसे छान ' लेना बहुत जरूरी है। लिखा भी है-- "वस्त्रपूतं पिवेजलम। मैने तो एक फिलटर खरीदा है, उसी मे छान'बिल्लौरी ग्लास मे पानी पीता हूँ। वर्फ के साथ शीशे के ग्लास में पानी रख पीने मे बड़ा मना मिलता है। इतने में एक चौथे साहव बोल उठे-हमको ये सब खटराग मालूम होता है । यहाँ तो खरा खेल फरुखाबादी पसन्द प्राता है। प्यास ने सताया तो दो अाने फेंक दिये, सोडावाटर का बोतल मुंह मे लगाय, घट्ट-घट्ट उतार गये, कलेजा तर हो गया। इतने में एक पांचवे साहब जो वहाँ मौजूद थे, कहने लगे- हे भगवन् ! धर्म के तुम्हीं अव रक्षक हो। न जानिये कैसा समय आया है कि अगरेजी पढ़-पढ़ लोग भ्रष्ट हो जाते हैं । अपने तो कैसे ही प्यास लगा हो बिना चरणोदक मिलाये जल कभी नहीं पीते । अब सोने को लीजिये । पसेरियो खटमल से लदी हुई टूटी खाट से ले उमदा से उमदा पलंग, ईजी-चेयर और कोच तक न जानिये फितने खटराग चे गये हैं। सो सव इस रुचि ही के भांति-भाँति के ईजाद हैं। इतने पर भी जब नींद का झोका श्राता है तब यह सचि यहाँ तक बेहया बन जाती है कि कंकड़ पर भी सोइये तो मखमली कोच का मजा मिलता है। "निद्रावराणां न च भूमिशैया"।' से भी जिद्दी सोनेवाले मनहस पाये जाते हैं कि चलते-चलने . सोते हैं, ग्वात खाते-सोते हैं, गत चीत करने में एक बात मुंह से