उपमा ४५ करनेवाले चन्द्रमा को बादलों ने आकर छिपा लिया। जो तुम्हारी सी चाल का अनुकरण करनेवाले हस थे वे भी मानसरोवर को चले गये। अस्तु, तुम्हारे वियोग मे जिस वस्तु मे तुम्हारा कुछ भी सादृश्य था उसी ही से हम अपना जी बहलाते थे। दैव प्रतिकूल हो उसे भी न देख सका। । एक अन्योन्य उपमा है-"तवाननमिवोन्निदमभोजमिववेमुखम्।। तेरे मुख के समान कमल खिला है और कमल के समान तेरा मुख । अन्यच्च (गगन गरानाकारं सागर सागरोपसस । रामरावणयोयुद्ध रामरावण योरिव)। आकाश को उपमा आकाश ही है। समुद्र के बराबर का समुद्र ही है । राम और रावण का युद्ध राम गवण के युद्ध ही की उपमा हो सकता है । और भी-(गिरिरिव गजराजोऽयं राजराज इवीचकै धिमातिगिरिः। निझर इव मदधारा भदधारेवास्य निर श्रवति)। उँचाई में यह हाथी पहाड़-सा है और यह पहाड़ हाथी-सा ऊँचा देख पडता है। झरने के समान इसके मद की धारा वह रहा है । इस पहाड़ से झरने हाथों के मद-से बह रहे हैं। चन्द्रा- लोक ग इस प्रकार की उपमा को अनन्वय-अलंकार कहा है। उत्प्रेक्षितोपमा-(मय्येवारया मुखश्रीरित्यज मिन्दोर्षिकत्यने पति सायदसत्येवेश्यसा वुत्प्रेक्षितोपमा) मेरे ही में उसके मुख की शोभा है. चन्द्रमग यह तेरा घमण्ड करना न्यथं है क्योंकि वह कमल में भी है। इस उपमा को उत्प्रेक्षितोपमा कहते हैं। (कि पद्ममन्तर्धान्तालि किन्तेलोलेक्षणमुसम) (चचन कटाक्ष-युक्त यह तेरा मुख है या भ्रमर को भीतर छिपाये हुये कमत या पुष्प है । यहाँ अन्त भ्रान्तालि का साहश्य कालो पुतली से है। (पन पदरजश्चमः पिताम्या तवाननस । समानसपि लोरसेक मितिदिन्दीपसास्मृता) रन और चन्द्रमा तेरे मुख के समान तो है · · पर पस मे रज अर्थात् धूलि जो फूलों में साधारण रीति पर रहतीही
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