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काल मे भी वे उनसे कितना सीख सकते हैं । हमें विश्वास है, इसनिबन्धावली का हिन्दी के साहित्यिक इसके अनुरूप ही आदर करेंगे।
इंडियन प्रेस, प्रयाग
१६ दिसम्बर १९४१
देवीदत्त शुल्क