४४ भट्ट-निवाधावली ' आपकी कीर्ति हंसी के समान धवल है। यहाँ दोनों में सामान्य । गुण धवलता में सादृश्य दिग्वाया गया है। (भोरुहमिवातान्त्रमुग्धे करतलं तव ) 'मुन्धे, तेरा हाथ कमल के समान ताम्रवर्ण है । यहीं कमल और . नायिका के हाथ की ललाई साधारण धर्म में साहश है। (सलीलमिदमायाति वधूगंजवधूमि) यह वधू गज वधू (हथिनी) की सी अठखेली चाल से चली श्रा रही है। यहाँ अाना इस क्रिया में सारश्य है। (आकाशाकाशतेऽस्यर्थ शिववाद्विधुभूपण) चन्द्रमा से भूषित आकाश शिव के समान शोभा दे रहा है।' यहाँ विधु रूप द्रव्य से सादृश्य पाया जाता है। कमी प्रसिद्ध बात को विपर्यय उलट कर उपमा दिखाई जाती है इमे विपर्यासोपमा कहते हैं । (तवानन मिवोनिमरविन्दमभूदिवं) तेरे मुख के समान खिला हुमा अरविन्द था। यहाँ खिलना धर्म पुष्प का है जो अरविन्द (कमल) में होता है मो मुख में माना गया यह विपर्यय है। विश्वनाथ का मत है कि यह उपमा मे अलग प्रतीप नाम का एक दूसरा ही अलंकार है, अर्थात् जो उपमान है उमें उपमेय नना देना, जैसे (स्वल्लोचनसमं पान स्वासहशा विधुः) तेरे लोचन के नमान पा है और तेरे मुरार मसान चन्द्रमा है। नेत्र की उपमा कमल और मुग्य की उगमा नन्द्रमा ने बहुधा दी जाती है मां यहाँ उलटा किया गमा। और भी ! "यवन्नेत्र समानकान्तिसखिलेमान तदी- न्धीवर, मेधैन्तरितः प्रिये तब मुखच्छायानुश्वरी शशी येऽविद्गमना तुशाशिगतयस्तगाजहंसागतास्वादश्य विनावमात्रपि मेदेवननक्षम्यो। रामचन्द्र मीता ये, वियोग में कहते हैं-प्रिये, तुम्हारे नेत्र की कानि समान शान्ति रखनेवाले में कमल थे सो हम वर्षाऋतु के प्रा जाने से पाना मे सूब गये। तुम्हारे मुख की छाया का अनुहार -
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