जबान ३७ जाते हैं जिससे उसमे सुगन्धि पाजाय, और सुगन्धित भोजन मामूली भोजन से सवाया अधिक खाया जाता है। अब दूसरी बात नेत्र को जिह्वा से क्या सरोकार है। साफ . और स्वच्छ पदार्थ देखते ही जीभ से पानी टपकने लगता है, स्वा- दिष्ठ भोजन कमीफ और मैला हो तो, भाव दुष्ट होने से चित्त उस पर इतना नहीं लहालोट होता जितने साफ और स्वच्छ पदार्थ पर जो नेत्र को भावता हो। इसी तरह स्पर्श-सुख का सूक्ष्म अनुभव जैसा. जीभ कर सकती है वैसा शरीर के दूसरे हिस्से नहीं कर सकते। इसी से जीभ का रसना यह नाम सब भाँति सार्थक है । ईश्वर करें रसना किसी की रस के अनुभव मे तेज और चोखी हो । चटोरी जीभ लाखों रुपया चाट बैठती है और हविस उसकी नहीं बुझती ।। न जानिये कितने लोग केवल चटोरी जीभ के कारण लाख का घर खाक मे मिलाय सब चाट बैठे। जुत्रा शराब ऐयासी चटोरापन इन चारों ऐवों मे किसी एक का हो जाना बरबादी के छोर तक पहुंचाने के लिये काफी है। दैव के कोप से जिनमे चारों हैं उनकी सपूती और लियाकत का भला क्या कहना। तावजिवेन्द्रियो न स्याद्विजिवेन्येद्रियकः पुमान् । न जयेगसनं यावत् जित सर्व जिते रसे ॥ तब तक मनुष्य जितेन्द्रिय नहीं हो सकता चाहे और सब इन्द्रियों को वश मे कर भी लिया हो जब तक रसना को अपने वश नहीं किया। एक जिह्वा को काबू मे रग्ब कर बाकी और इन्द्रियाँ काबू मे श्रा सकती हैं। और भी- जिह्वयातिप्रमाथिन्या जनो रसविसोहितः । मृत्युमृच्छत्यसबुद्धिीनस्तु बडिशैर्यथा ॥ चटोरी जीभ के कारण मनुष्य मूढ़ बन मछली के समान जि हा के वश मे पड़ नष्ट हो जाता है
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