निवेदन पण्डित बालकृष्ण भट्ट हिन्दी के स्वाभिमानी लेखक थे। उन्हें स्वदेश और स्व-संस्कृति का अत्यधिक प्रेम था। उनके 'हिन्दी-प्रदीप' का एक-एक पृष्ठ नहीं, एक-एक शब्द हमारे इस कथन का प्रमाण. है। हिन्दी-भाषी नवयुवकों को अपने इस महारथी की रचनाओं को- पढ़कर अपनी ज्ञान-वृद्धि करनी चाहिए । भट्ट जी की रचनाये पढ़ने का सौभाग्य मुझे उतना अधिक पहले नहीं मिला था। भला हो पण्डित धनञ्जय भट्ट का कि मुझे उन्होंने उनके पढ़ने का अवससर दे दिया, और मेरी आँखें खुल गई। इसमे सन्देह नहीं, भट्ट जी हिन्दी के लेखक ही नहीं, वे उसके सच्चे निर्माता थे। ___ इस निबन्धावली' के तैयार करने में धनञ्जय जी ने काफी अधिक परिश्रम किया है। वे भट्ट जी के पौत्र हैं और उनके पास 'हिन्दी-प्रदीप' की पूरी की पूरी फाइल है। परन्तु मुख्य बात तो यह है कि उन्होने उसका अध्ययन भी किया है। इसी से 'भट्ट-निबन्धा- वली' इस सुन्दर रूप में तैयार हो सकी है। मैंने तो केवल इसका प्रफ भर पढा है या फिर किसी-किसी निवन्ध का कुछ अश निकाल दिया है तो कहीं-कहीं छापे की भूल समझ कर उसे सुधार देने की ढिठाई की है। परन्तु यह अपराध भी मैंने बहुत सॅभल कर इसलिए किया है कि भट्ट जी की 'मौलिकता' अत्तुएण रहे-उनकी वस्तु ज्यों की त्यों रहे। इन निवन्धों को पढ़कर हिन्दी के पाठक जान सकेंगे कि भट्ट जी कितने ऊँचे पाये के सुलेखक थे और पान हिन्दी के इस अभ्युदय-
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