पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/४३

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विश्वास . "Eat drink be merry this is the golden rule" ' मरने के पीछे जब कुछ हुई नहीं तव क्यों भांति-भांति की परहेजगारी और संयम मे हलाकान हो जिन्दगी का मजा न लूटै? ' इन अविश्वासियों के फिरके मे एक "मॉरलिस्ट होते हैं अर्थात् समाज में दूषित चरित्र न कहलाये जायें, इसलिए हमारी "कानशेन्स" विचारशक्ति क्या कम है। हम सकल साइन्स और फिलॉसफी चाटे. बैठे हैं तमाम इल्म और हिकमत हमारी मूठी में हैं । वह कब काम आवेगा जो हम साधारण लोगों की भांति मजहब और धर्म पर विश्वास रत अनेक तरह के बेहूदा "असंप्शन" अनुमान मान बैठे कि विहिश्त और दोजख अलग-अलग बने हुये हैं। विहिश्त मे अल्ला मियां राज करते हैं, जिनकी चितवन में ऐसा असर है कि पुण्यात्मा को वह चितवन अमृतरूप और चिरस्थायी मुक्ति-पद प्रदान करती है। वही पापात्मा गुनहगार की ओर जहाँ आँख उठा के देखा कि वह जहन्नुम की आग मे जल-भुन खाक हो गया इत्यादि । धर्स या मजहब की जड केवल विश्वास है, इसी पर ईश्वर का अस्तित्व निर्भर है क्योंकि विश्वास विना रक्खे जो कुछ किया जाय वह न करने के तुल्य है इसलिये कि यह पहली सीढी है। विश्वास होने पर भक्ति या श्रद्धा का दर्जा आता है। इसी से गीता में भगवान् ने कहा है- __'अन्नद्धया हुतं दत्तं तपस्त कृतं च यत् । असदित्युच्यते पार्थ न च तत् प्रेत्य नो इह ॥' बिना श्रद्धा के जो हवन किया गया, दान किया गया, तपस्या की गई या जो कुछ किया गया, वह न करने के बराबर है; न उसका फन इस लोक मे है न परलोक मे । परलोक के लिये तो किसी तरह पर नहीं है, इस लोक में कभी की तारीफ हासिल करने को दम मात्र के लिये है।