' भट्ट-निबन्धावली जाति है जहाँ इस परपरा पिशाची की प्रतिष्ठा और गौरव नहीं है, . बड़े-बड़े नामी देश-हितैषी, संशोधक और रिफार्मर सिर धुना किये इसके पीछे पड़ मर गये, खप गये पर इस परंपरा के हटाने मे कुछ असर न पहुंचा सके । लेक्चरारो'का लेक्चर परंपरा के अनुकूल हुश्रा सर्वथा शिरोधार्य और माननीय है। लेक्चर देनेवाले ने जरा भी प्रतिकूल कहा कि नास्तिक, विधर्मी, पापिष्ट, भ्रम में पड़ा, भटका हुआ आदि बौछारों की समाचार पत्रवाले झड़ी बांध देते हैं, उस बेचारे का फिर कहीं ठिकाना नहीं लगता। देश में अब तक क्या हुश्रा, धागे और क्या होगा, पढे लिखों के मस्तिष्क मे न जानिये क्या-क्या खिचडिचों पक रही हैं । तबदील के एक मात्र भक्त ये लोग जोश में भरे सब तरह की बाते सोचा करते हैं किन्तु परंपरा के सामने एक भी नहीं चलती । इसमें से कोई-कोई चतुर मयाने लेक्चरवाज नई सी नई ईजाद या कोई नई तबदील को भी परंपरा में प्राप्त-सिद्ध, कर समाज में सवमान्य हो जाते हैं। हम लोग बाल्य विवाह को हटाने को कितना ही टॉय-टाय किया करते हैं, अनेक इसके दोष दिखाते हैं, किन्तु, परंपरा के क्रम के विरुद्ध है इमलिये केवल परश्य-रोदन सा होता है। कोई-कोई नवयुवक, जिन्हें विधवा से ज्याद करने का खत पैदा हो गया अपने गन की कर गुजरते हैं पर पीछे विरादरा से बाहर और समाज से निष्कासित हो किसी काम के नहीं रह जाते। एक जातिवालों का सहभोजन बहुधा लोग चाहते है, यह इतना शाख-विना भी नहीं है किन्तु परंपरा से ऐसा नहीं होता पाया। किसी की हिम्मत या साहम नहीं होता कि इस बात में अगुवा बने । व्याह-शादी में गाली गाने की सुप्रथा नब लोग नापसन्द करते हैं गमी न महीनों और बरसो तया मापासली को नहीं रुचता पर परंपरा में होता चला पाया, हटाये । नही इटवा, सिके रोषने को मुशिक्षित नौजवान कितनी ही कद-गाद
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भट्ट-निबन्धावली