पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१५२

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३१-परचित्तानुरंजन ऐसे पुरुष जो परचित्तानुरंजन मे कुशल हैं अर्थात् जिनकी सदा. चेष्टा रहती है कि हम से किसी को दुःख न मिले और कैसे हम दूसरे के मन को अपनी मूठी में कर लें, ऐसे पुरुष मनुष्य के चोले मे भी साक्षात् देवता हैं । इस लोक और पर-लोक दोनों को उन्होंने जीत लिया। परचित्तानुरंजन या परछन्दानुवर्तन से हमारा प्रयोजन चापलूसी करने का नहीं है कि तुम अपनी चालाकी से। . . ' "मूर्ख'छन्दानुवृत्तेन के क्रम पर भीतर तो न जानिये कितनी.मैल और कूड़ा-जमा है। - अपना मतलब गांठने को उसके मन की कह रहे हो, वरन् अपना । •मतलब चाहे बिगड़ता हो; पर उसका चित्त श्राजुर्दा न हो। इसलिये . जो वह कहे उसे कबूल कर लेना ही परचित्तानुरंजन है। . दिल्ली के बादशाह नसीरुद्दीन महमूद ने एक किताव अपने हाय से नकल की थी। एक दिन अपने किसी अमीर को दिखला रहा था। . उस अमीर ने कई जगह गलती बतलाई। बादशाह ने उन गलतियों फो दुरस्त कर दिया। जब वह अमीर चला गया तब फिर वैसा ही . वना दिया जैसा पहिले था। लोगों ने पूछा, ऐसा आपने क्यों : किया १ बादशाह ने कहा, मुझको मालूम था- कि मैंने गलनी नहीं की, लेकिन खैरखाह और नेक सलाह देनेवाले का दिल दुग्वाने से क्या फायदा १ इससे उसके सामने वैसा ही बनाय' यह मेहनत अपने . ऊपर लेनी मैंने उचित समझा । व्यर्थ का शुष्कवाद और दात-बिट्टन . करने की बहुधा लोगों की श्रादत होती है। श्रन्त को इस दांत-किटन से लाम कुछ नहीं होता। चित्र में दोनों के कशाकशी और मैल