१२७ नये तरह का जनून झगड़ा और आपस की फूट के सिवा और कुछ हो ही नहीं सकता; जिससे कौमीयत या जातीयता का भाव हमारे मे कभी आ ही नहीं सकता | अच्छी तरह जो गवाही दे रहा है कि अमुक वात हमारे समाज मे बड़ी बुराई की है, उठा दी जाय तो सिवा फायदे के कभी नुकसान हई नहीं। पर मौका आने पर हम तुम्हारा मुंह देख रहे हैं, तुम हमारा। इतनी हिम्मत नहीं है कि राह दिखलाने वाले अगुवा बन उस बुराई को तोड़ सकें। मसल है- "और को लुखरी सगुन बतावे, भाप कुत्तों से चिथावे।" पढ़े-लिखे बड़े बाली दिमाग काम पड़े तो कहो ऐसा लेक्चर झारै कि पक्के घंटे भर वाद दम लें, किन्तु समय पर लेक्चर में कही हुई बात को करके दिखाय देने में दुम दवाय कोसों दूर भागेगे। करते आप हैं पर उस भूल का दोष किस्मत, होनहार या संस्कार को देते हैं। परम सुन्दरी कन्या साक्षात् देवी की मूर्ति जिसकी कीमत दस , हजार से कम नहीं हो सकती। उसके योग्य लड़का भी पढ़ा-लिखा, सुशील, खुशनसीब सब तरह पर उपयुक्त है। पर नाड़ी वर्ग न बना,. शादी फिस्स कर दी गई। या बना भा तो हाड़ अच्छा नहीं है, सम्बन्ध नहीं हो सकता। हाड़ का अच्छा, महा उजड्ड, छत्तीसो गुन बनता भी है, उस रूपवती सुन्दरी के साथ व्याह दिया गया। व्याह के महीने भर बाद लड़का यमलोक का बटोही हो गया। अब इस समय सस्कार और किस्मत को दोष दे सिर धुनते हैं । अपनी भूल को कभी एक बार भी न पछतॉयगे; न अपने गन्दे समाज को कुछ दोष देंगे। कितने ऐसे सामाजिक काम हैं जो केवल स्त्रियो ही के अधीन हैं और स्त्रियों की जैसी हीन दशा हमारे देश में है वह विदिन ही है । ये सशोधक लोग बाहर चाहे जितना जोश और जनून दिखलावे, घर के भीतर इनके उपदेश वत्तृता की गन्ध भी नहीं पहुंचने पाती। तस्मात्
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