१२६ - भट्ट-निबन्धावली से है। ऐसे ऐसे हजारों किस्म के कारखाने इङ्गलैण्ड, जर्मनी, फ्रांस .. और वेलजियम वालों के हैं। वही हम हैं जिन्हे लड़का-लड़कों के . व्याह से इतनी फुरसत नहीं मिलती कि दूसरा काम करे। बस, इसी के लिये जन्मे हैं कि गन्दी सृष्टि बढ़ाते ही जॉय । औलाद को तालीम वगैरह की तो चर्चा ही क्या ? उनके लिये पेट भर अन्न न मुहैया कर सके बता से । तन ढापने को कपड़ा, न सम्पादन कर सके, कोई हर्ज नहीं । सन्तान को कुँवारा न रहने दें, जिसमें सृष्टि बढ़ती रहे और अनुत्साही मुर्दा दिल निष्पुरुषार्थियों का दल जुड़ता जाय । हजार मेहनत-मशक्कत के बाद वी पुत्र को अन्न-वस्त्र से सन्तुष्ट रखना और काम-काज मे डेढ़ बीते की नाक न कटने पावे । जहाँ सपूती का छोर है, वहाँ सशोधको को अपना व्यर्थ सिर पचाना जनून नहीं तो और क्या कहा नाय ? अगरेजी राज्य के इस कड़े शासन में जब हम सब और में दवे हैं और चारों ओर से ऐमें कस दिये गये हैं कि हिल नहीं सकते, ग्राम- दनी का कोई द्वार खुला न रह गया। यावद्वस्तु की गिरानी से खर्च इतना बढ़ गया कि किसी तरह पेट भर अन्न मिलता जाय. रूखी-सूखी. खाकर बाल-बच्चों को पाल सकें, मानों समस्त सपूती का निचोड़ पा गया। ऐसी हालत में भी जन हम न चेते तब अव का चेतेंगे १ दूसरे यह कि गवर्नमेण्ट के कानून की जागती ज्योति सोलहो कला पूर्ण नग- मगा रही है। न्याय और इनसाफ सब के लिये एक-सा खुला है।" शेर-वकरी एक घाट पानी पीते हैं। किसी पर किनी का अन्याय और अत्याचार नहीं चल सकता। एक-एक मादमी अाजाद और . स्वच्छन्द हैं । ऐगा तुभीता पाकर जब हमने न कुछ किया तब सिवा इसके और क्या कहा जाय कि हमार वरार पतह कोम दूसरी कोई नहीं है। आगे कदम बढ़ाने को कौन कहे, सी-ऐसी सामाजिक और मानी कैः पीछे लगा दी गई है जिनका परिणाम ईण्या-द्रोई. लड़ाई
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