८. भट्ट-निबन्धावली ' . नितान्त कष्टदायी होती है। अव थोड़ा यहां पर आपको यह दिख- - लाया चाहते हैं कि कौन किस लिये दीर्घायु होने की इच्छा रग्बने हैं । । बुद्धिमान, कवि-कोविद विविध क्ला-निपुण इसलिये बहुत दिनों जिया चाहते हैं कि जिस कला या हुनर को उन्होने सीखा है या नई ईजाद की है, उसे परिणत करें अर्थात् औरों में उसे फैलाय अपने हुनर और कला को और बढ़ावे या पक्की करें । बुढ़ापे में मानसिक या शारीरिक शक्तियों के कम हो जाने से कभी को किसी नई रचना की बुद्धि न रही तो कवि अपनी पुरानी ही रचना या कृत्य को देख या याद कर अपना मन प्रसन्न करता है और उसका यात्मा जुड़ाता है । विद्वान् नथा बुद्धिमान् दीर्घ जीवन मे जो उसे यानुभव हुश्रा है उसे और भी पुष्ट किया चाहता है। उपाधिधारी बड़ी मेहनत और बहुत सा खर्च कर जो पदी उन्होंने पाया है उस पदवी का फल राजा और प्रजा में मान, लोगों के बीच प्रतिष्ठा और सत्कार के सुख का अनुभवे किया चाहते हैं । वकील, बैरिस्टर तथा जज लोग दीर्घ जीवन इसलिये चाहते हैं कि कानूनों के जाल में प्रजा को फसाने के लिये हिन्दी की चिन्दी निकाल कानून की बारीकियों में मान चढाते रहे । एडिटर दोध जीवन इसलिये चाहते थे कि अपने कलम के जोर से राजा और प्रजा दोनो की भलाई करते हुये अपनी लिखावट से पढ़नेवालों का मन अपनी ओर खींच लें, पर सेडिशन के भय ने उन्हें संकुचित कर दिया तो अब उनका हौगिला पस्त हो गया। हमारे सेठ ज) दीर्घ जीवन की इच्छा इसलिये रखते हैं कि गजिया पर गंजिया रुपयों से भर तहबानो-संतानों में सौंत के रखते नौय' किसी उचित काम में जिसमें देश या जाति-भलाई की श्राशा हो उसमें एक पैसा वरचते मन से इनार तरह का श्रागा-पीछा हो, पर लड़की लड़का च्याइने में गजिया की गजिया लुट नाय कुछ परवाह नहीं इत्यादि। जून 12
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