पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१०१

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दीर्घायु अचरज तो यह कि "तुम दीर्घायु हो, दोर्वजीवी हो, इसे सचमुच संसार में आशीर्वाद कहते हैं, "शतं जीवेम शरदः शतात्" इत्यादि वेदवाक्य भी है। यदि यह कोई कहे, तुम अल्पायु हो जल्द इस दुनिया फानी से रवाना बाशद हो, तो जिसे कहो वह बुरा मान जायगा, आपका दुश्मन बन बैठेगा। इसमें सन्देह नहीं, मनुष्य बहुत दिनों तक संसार मे रह बहुत-सी बातों का अनुभव करता है; चतुराई, ज्ञान, जानकारी श्रादि बढ़ती जाती है, जिससे वह अपने को और दूसरों को भी बहुत कुछ फायदा पहुंचा सकता है। लोग उसको प्रतिष्ठित और प्रामाणिक मानते हैं। उसकी हर एक बात की कदर करते हैं । मनु ने भी लिखा है- “शूद्रोपिदशमी गत शूद्र भी है. के ऊपर पहुंच गया हो तो अभिवादन आदि के - द्वारा उसकी वैसे ही प्रतिष्ठा करे जैसी ब्रह्मण की होना चाहिये । पर यदि कोई दीर्घायुवाला पाप और बुरे कामों पर कमर बांधे तो उसको बुराई करने का बहुत दिनों तक पूरा मौका मिलता रहेगा। रावण ऐसे बहुत दिनो तक जी कर जब किया होगा, पाप और हत्या ही करता रहा होगा । इस संमार में बीती बातों को सोचना और याद करना भी बड़ी बात है ! जर कभी हमारे मन में आता है कि फलाने समय फलाने मौके पर हम कैसी घोर विपत्ति में पड़ गये थे, या यह स्मरण होता है कि अमुक समय हमको कैसे-कैने सुख मिले, तो आनन्द चित्त में होता है और ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कि उसने हमें दीर्घजीवी कर- उन-उन विपचियों से हमारा उद्धार किया, तथा ऐसे ऐ में श्रेय और कल्याण का भाजन हमें किया। पर जब यह याद श्राता है कि फलाने हमारे हितैपी प्रीति-पात्र भित्र गुजर गये तो कैसा दुःख और सन्ताप चित्त में बढ़ता है ? इससे दीर्घायु की उपमा हम उस धूपचौह से देंगे जिसमें अच्छा और बुरा दोनों रंग दिखाई पड़ते