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३० : भक्तभावन
 

मोर मुकुट वर्णन


माथे मनमोहन के मुकुट विराजे गोल। जामें गति लोलजा लगी कनीन कनिकी।
बीच बोच हारा के जड़ाऊ की तमक जैसी। तैसी चार चमक चमके लाल मनिकी।
ग्वाल कवि तापे मोर पंख की गारद कोर। जोर छवि हरित असित झलकनिकी।
मानो शशि सूर दोउ करत सलाह बैठे। ताते तहाँ चारो ओर चोकी बुध शनि की॥६०॥

गति वर्णन


माथे पे मुकुट मोर पंख को विराजे गोल। लोल कल कुण्डल लसनि मनि लाल की।
पौन के परस पीत पट उनि जेसी। तैसी झेत हिलन हिये पे बनमाल की।
ग्वाल कवि ग्वालन के संग में गऊन पाछे। गो रज गरक आछे अलक रसाल की।
ईसन की दावनि सतावनि गयंद वृंद। मंद मंद आवति अनूप नंदलाल की॥६१॥

सवैया


गल बांहि सखान के डारि गरे करें मीठि महा बतरावनी री।
अलके चिकनी झलकें रजमें ललके सुरभीनकी धावनि री।
कवि ग्वाल फिरावन फूल छरी फिर फांदनि में सतरावनि री।
उर में अब आनि अडी अलसी अलबेली गुंविंद की आवनि री॥६२॥

पोतपट वर्णन


कैधों पुखराज पुञ्ज सोहे शैल नीलम के। केषों चपला चमके स्याम घन पें।
कैधों रस अद्भुत लपेट्यो रसराज जूसों। कैधों फूल चंपक धरे तमाल घन में।
ग्वाल कवि राजे सुर गुढ ले मदन कैधों। कैधों हेम वर्ष लाजवर्त की शिलन में
कैधों दुति राधे की सरकि परी स्याम तामें। कैंधों पीतपट हे सलोने स्याम तन में॥६३॥

संपूर्ण मूर्ति वर्णन


पद कोकनद ओ कुलफ कंज कोश में है। जंध कदली सी लंक केहरी विसाल सो।
उदर सुपान नाभि कूप सी गंभीर गुरु। उर नवनीत पानि पल्लव रसाल सो।
ग्वाल कवि भुज लोल लतिका लहर दार। कंठ कल कंबु मुख नीलकंठ जाल सो।
केश स्याम चौर गौन गज सो सुगंध वारो। मुकुट शशी सो सब तन है तमाल सो॥६४॥

पंथ पूरनार्थ कवि वचन


सेवत नरन आश भरननि वित्त नित्त। सेवे कर्मो न जाहि जो रची सभा सुरेश की।
तिमिर अग्यान को विनास्यो चहे दीपन तें। ध्यावे क्यों न जाहि जाते दुति है दिनेश की।
ग्वाल कवि जाके गुन गन को कहे सो कोन। मौन वृत्ति धारि व्यास हारी मति रोश की।
त्यागी जग विषमन शिख शिख शिखभरी। लिख दिख नखशिख छवि ऋषिकेश की॥६५॥

इति श्री कृष्णचंद्रजू के नखशिख पूर्ण