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यमुनालहरी : ११
 

कवित्त


अविधि सुरापी चोर तापी नीच पामी मुखी। गोजा तिहारी बूँद लघु अति ह्वै गई।
ताही क्रिन पल में अमल भल रूप भयो। कुटिल कुढंग ताकी रेख लेख ह्वै गई।
ग्याल कवि कीरति सु चीरति दिसान जात। दूतन की चित्र की चलाकी चित्त ह्वै गई।
चारमुख चंद्रधर चाहत चित्रित ताहि। चारन के देखते ही चारभूज हैं गई ।५६।

कवित्त


केतक जरिया रामनाम के उपासिक है। केतक कहै या कृष्ण नाम पन पाकों में।
केते मंत्र जापी ब्रह्म व्यापी जग जानत है। केते सेव शिव ही को सुमित ताकों में।
ग्वाल कवि जाने जगदंबा राधिका के पद। केतक अगाधिका सु मात साधिकाको में।
कामदा सभी है पे न चाहत इनम वय। आठों जाम करत प्रनाम जा/नाको में।५७।

कवित्त


जोधा जोर जबर कुन कोऊ आन में। जोर जोर पातिक जमानत को रम-गोई।
जाकों जुर जाहर जरायों जब भारतियों वह। जमुहाश करिहीं में जाइ इमि गाउयोई।
प्याल कवि कहे ताके पुरुष परे है नर्क। अव: सम हैं गयो विमानन सयाज्योंई।
केर वह पातकी कियो है गरुड़ासन को। देब अमरवासन सिंवासन बिरधिथोई।५८।

कवित्त


अखिल मनोरथ में अपने पुजायबे को। तेरे तीर जमुना कहायों तरसा करें।
भोर भयो चाहते ये अगोर अग मेरे किये। घेरे किये पारशद कौन चरचा करै।
ग्वाल कवि ये तो सुरराज हो न आयो हाय। सोन कियो दियो तीन लोक अरचा करै।
अच्छी (न करत प्रतको अंतरल्ली देत। कच्छप तुरी देत है न पचशेपतिका करे।५९।

कवित्त


मगि देत विदित विरंच बर बानिक सत। माँगे देत सचीपति पामें कछु भ्रमुना।
माँगे देत शेष औ गनेश त्यों दिनेश देत। तातें री नारद मुनेशहु की कमुना।
प्याल कवि अरा बजरङ्ग वीर माँगे देत। माँगे बिन देवि कों काहु कीन यमुना।
मौत्गर्वतें पूजत मनोरथ सदातें सब। मांगे दिन अधिक दिवैया त ही जमुना।६०।

  

कवित्त


मर्दन गयी है नर्मदा को सर्वदा तें मद। गोमती गरीबनी की गाथा है असारकी।
चंबल चपी है वर वरना तपी है ताकि। हाय को जपी है बिललान बेसुमार की।
ग्वाल कवि सागर समयों शोक सागर में। वह तनयातें भूमि वलय विचार की।
पावै कौन परम पुनीत भानु नन्दनी की। तारक सकति और गंभीरता धारकी।६१।