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यमुनालहरी : ५
 

कवित्त


मारतंड तनया तिहारे सुने कौतुक मैं। सौतुक गुविन्द करै केतन को मैया तूं।
तेज करे आनन सुजानन में आन करे। मान करे जग में प्रमान पसरैया तूं।
ग्वाल कवि आनन्द की छनि छकैया फेर। कठिन कलेशन के भशन हरैया तूं।
शहर जमेश को जरैया जमदूतन को। कहर कुढंगन को कतल करैया तूं॥२०॥

कवित्त


जीत होत रन में सुनीत जुत मेधा होत। प्रीत होत मीन में अनीतभीत गमुना।
भाल होत उदित विशाल होत तेज ताको। साल होत शत्रुन दुशालन
ते कमुना
ग्वाल कवि कीरति प्रचार होत एकतार। पारावार पार होत बेसुमार समुना
दान होत दीरघ दिमाक होत जग बीच। ज्ञान होत हियरा में ध्यान होत जमुना।

कवित्त


कैधों अंधकारन के अखिल अगार चारु! कैधौं रसराज की मयूखे मंजुता को है।
कैधों स्याम विरह वियोगिन के नैन ऐन। कज्जल कलित जल धारै धार ताकी है।
ग्वाल कवि कैधों चतुरानन के लेखिबे को। फूट्यो मसि भाजन अनूप छवि वाकी है।
कैधों जल स्वच्छ में प्रतच्छ नभ झाई किधौं। तरल तरंग मारतंड तनया की है॥२२॥

कवित्त


गोरिन में गनिका जरूरदार गनिका की। गौए गएँ गजरा गुलाबी हित में छई।
ताको एक तनया कृसित तन ताको रहे। ताको रहे वहम बिलन्द चितता ढई।
ग्वाल कवि भाखै[१] रवि तनया को नीकी राखें। कहत इते के चकाचौंधी चित में भई।
ह्वै गई गोविंद मोर चन्द्रिका विराजी शीश। भाजी फिरे छोहरी अमाजी कित में गई॥२३॥

कवित्त


कठिन कलेशन के भेसन खकोरिबे कों। फोरिखें कों पापके पहार अति भाराये।
दीह दीह दारिद के दलन बिथोरि। कों। जोरि३ को आनन में तेज के अंगारा ये।
ग्वाल कवि आनन्द विसालन में बोरिबे कों। शूमि झमक झोरिबे को अधर कपारा ये।
भर्म जमराज के जरूर तोरिबे कों जगी। धर्म धारिबे को जमुना को जोर धाराये॥२४॥

कवित


काहू शाहुकार को चुरायो धन चोर एक। शोर भयो शहर गयो दई किते किते।
बहुत दिना में गयो बाँधि[२] नृपति आगे। पूछों ते लयो है कह्यो इमुनाहि ते हिते।
ग्वाल कवि भाख्यो रवि जाने जो लयो में माल। हास भयो ओरे इमि कहत तिते-तिते।
स्याम रंग ह्वे के भुज चार भई आयुध से। चौंक्यों अमरवास रह्यो हाकिम चितं चिते॥२५॥


  1. भाखे
  2. बांधीं।