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भूमिका

रीति परम्परा के अंतिम आचार्य-कवि ग्वाल ( सं० १८५९-१९२४ वि०) रीतिकाल को आलोकित करने वाले एक ऐसे नक्षत्र हैं,जिनकी कृतियों में रीतिकाव्य अपनी पूर्णता को प्राप्त कर अस्त होने लगता है । वस्तुत:ग्वाल का काव्य रीतिकाव्य चेतना का वह निर्वाणोन्मुख दीपक है जिसके पश्चात् रीतिकाव्य की अटूट परम्परा का वैसा आलोक पुन:दिखाई नहीं देता है अतएव यह कहा जा सकता है कि ग्वाल तथा उनका कृतित्व रीतिकाल की अंतिम सीमारेखा का निर्माण करने वाला केन्द्र बिन्दु है । ब्रजभाषा काव्य के प्रकाण्ड पंडित आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने ग्वाल कवि के महत्व के सम्बन्ध में लिखा हैं-" ग्वाल कवि ने रीति ग्रंथों के लिए संस्कृत का पर्याप्त वाङ्मय आलोड़ित किया था । कवि रूप में ग्वाल कवि का महत्व चाहे उतना न हो पर रीति ग्रन्थकार के रूप में उनका पूरा महत्व माना जाना चाहिए । हिन्दी रीति साहित्य की परम्परा में संस्कृत आधार ग्रंथों का कदाचित सबसे अधिक आलोड़न करने वाले ये ही हुए हैं ।

जीवन परिचय

ग्वाल कवि का समस्त जीवन काव्य-रचना करने में ही व्यतीत हुआ था । यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि काव्य ही उनका मनोरंजन था और वहीं उनकी जीविकोपार्जत का सावन भी । ऐते महात्वपुर्ण कवि के जीवन-वृत्त एवं रचनाओं की प्रचुर प्रामाणिक जानकारी तत्कालीन युग के अन्य कवियों की भांँति ही अनुपलब्ध है । पण्डित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ० किशोरीलाल गुप्त, डॉ० ब्रजनारायण सिंह तथा डॉ० भगवान सहाय पचौरी आदि विद्वान मुन्शी अमीर अहमद मीनाई साहब की प्रसिद्ध पुस्तक 'इन्तखाबे यादगार' के आधार पर ग्वाल की जन्मतिथि सं० १८५९ वि० मानते हैं, जो अधिक प्रामाणिक प्रतीत होती है । ग्वाल के सम्बंध में सर्वाधिक प्राचीन लेख मीनाई साहब का ही मिलता है । वे अपने युग के एक ख्यातनामा शायर थे और रियासत रामपुर में लगभग चालीस वर्ष तक राज्याश्रित रहे थे । ग्वाल भी रामपुर दरबार में कुछ वर्ष राज्याश्रित रहे थे । मीनाई साहब उनके समसामयिक और अभिन्न मित्र थे ।

ग्वाल के पिता का नाम सेवाराम राय था और ये जाति से ब्रह्मभट ( बन्दीजन ) थे । इनका आरम्भिक जीवन वृन्दावन मधुरा में व्यतीत हुआ था । कवि नवनीत चतुर्वेदी के अनुसार जब ग्वाल केवल आठ वर्ष के थे तभी इनके पिता की मृत्यु हो गयी थी । बालक ग्वाल के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा की समस्त जिम्मेदारी इनकी निराश्रित माता के कन्धों पर आ गयी । रायों के कुल-धर्मानुसार ग्वाल की माता भी उनको किसी काव्य-शिक्षक से शिक्षा दिलाने के लिए बडी़ बेचैन रही । उन दिनों वृन्दावन में दयानिधि गोस्वामी अपनी पाठशाला में कवियों को शिक्षा देते थे । ग्वाल की माता ने पुत्र को दयानिधि के चरणों में डाल दिया । इसी पाठशाला में प्रसिद्ध कवि गोपाल सिंह नवीन भी पढे़ थे । कवि हरदेव ग्वाल के सहपाठी