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षट्ऋतु वर्णन तथा अन्योक्ति वर्णन : ७७
 

कवित्त


वाह वाहे आमकों बिहारी लाल ख्याल भरे। बाला बिरहागी तची अब न तचेंगी वह।
बानी कोकिला को विषधार सी पचायो करी। अब लों पची सो पची अब न पचेंगी वह।
ग्वाल कवि केत उपचारन सच्चाई करि। अब लों सची सो सची अब न सचेंगी वह।
आयो पंचबान ले बसंत बजमारो वीर। अब लों बची सो बची अब न बचेंगी वह॥१०९॥

कवित्त


सरसों के खेत की बिछायत बसन्ती बनी। तामें खड़ी चाँदनी बसन्ती रतिकंत की।
सोने के पलंग पर वसन बसन्ती बेस। सोनजुही भाले हाले हिये हुलसंत की।
ग्वाल कवि प्यारो पुखराजन को प्याली पूरि। प्यावत प्रियाकों करे बात बिलसंत की।
राग में बसन्त बाग-बाग में बसन्त फूल्यो। लाग में बसन्त क्या बहार है बसन्त की॥११०॥

इति श्री ग्वालकृत षटऋतु सम्पूरणं।