यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७० : भक्तभावन
 


कवित्त

केती विरहाग में झरें तें मुख झाग में सु। दागी में न दाग में बसी है ते विराग में।
प्रीतम समाज में जु में तो अनुराग में सु। (में तो) गूलताग में लगाऊँ लाल पाग में।
ग्वाल कवि राग में पगी हों प्रेम पाग में सु। डारों अंग राग में भले जे बिच बाग में।
मेरे भाल भाग में विरंच या सुहाग में सु। लेख्यो मोदलाग में सु खेलों फवि फाग में॥६७॥

कवित्त

प्रान पति आगम सुनायो सखियाँ न आन। करे है सुजान वातें कुलकुल की।
धायके वहाँ ते हाल होरन जटिल हौज। केसर लबालब कराई खुल खुल की।
ग्वाल कवि प्यारी पिचकारी करधारी जोर। जेसी छबि छाई झुमकान झुलझुल की।
लाल लाल गिंदुक गुलाल लाल लाल गुल। गालिब गुलाब गोल गादी गुलगुल की॥६८॥

कवित्त

एरी नन्दलाल ने मचायो ख्याल फागुन को। होत धुनि नीकी मुरली को करताल की।
येते मैं अचानक ही राधिका रसीली आय। रंगन भिजोये भरी दोरी कोर भाल की।
ग्वाल कवि कुमक करी है कुंकमो की जब। रही न सुधि कंचुकी कच को न चाल की।
कूलनि उताल की सों किलकी खुसाल की सों। भरि भरि मूंठी लाय डारत गुलाल की॥६९॥

कवित्त

जाउगे कहाँ कों नंदगाम को बबा के पास। खेल खेल होरी रंग बोरी इहि ठौर अब।
खेले तो जरूर पैन मानहु बुरो जो तुम। खेलो अजू जौक ते जितेके जिय दौर अब।
ग्वाल कवि प्यारे वह आई पिचकारी बचौ। प्यारी मूठि मेरो हू बचाओ कछु तौर अब।
आँख में गुलाब गयो हाहा लाल पैयों परों। नेक रहो रहो रहो डारो जिन ओर अब॥७०॥

कवित्त

गावत धमार धूम धाम धाम धाम माँहि। धीर न घरात मौज फौज के नगीच में।
बाल पिचकारी[१] की चलावनी बिहारी पर। गारी दे बिहारी नचे अबीर अलीच में।
ग्वाल कवि कहै ऐसें हुहुकी मिल मिल में। मूली सुधि देह गेह नेह नद बीच में।
प्यारी लाल छाप फूल मालन में पाई उत। लाल ने बुलाक पाई केसर की कोच में॥७१॥

सवैया

बालम मेरो न माने कह्यो करे, जंग और मंत्र धने बसुठी में।
पूछत व्याहित सों तुमसों, चितसों हटा दीजे बताइसुठी में।
त्यों कवि ग्वाल गुलाल की वादिन, देखी चलानि री अनुठी में।
लालमुठी में कहा करतूज भयो, जिहि, ते वह लाल मुठी में॥७२॥


  1. मूलपाठ––पीचकारी।