पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महामाजी जगाये गये और वह मुझे देखने आये। वह उनका मौन का दिन था । उन्होंने मेरे लिए मौन तोड़ा। उसी समय मोटर भेजकर वर्धा से ड.क्टर बुलाये गये । सुबह तक तबीयत संभल गई थी। दिल्ली में स्टैफर क्रिप्स वार्ताला' के लिए श्राये थे । महात्माजी दिल्ली जाना नहीं चाहते थे, किन्तु श्राग्रह होने पर गये । जाने के पहले मुझसे कहा कि वह हिन्दुस्तान के बँटवारे का सवाल किसी न किसी रूप में लायेंगे। इसलिए उनकी दिल्ली जाने की इच्छा न थी । दिल्ली से बराबर फोन से मेरा तबीयत का हाल पूछा करते थे । बा भी उस समय बीमार थी । इस कारण वे जल्दी लौट आये। जिनके विचार उनसे नहीं मिलते थे, यदि वे ईमान- दार होते थे तो वह उनको अपने निकट लाने का चेट करते थे। उस समय महात्माजी सोच रहे थे कि जेल में वह इस बार भोजन नहीं करेंगे। उनके इ. विचार को जानकर महादेव भाई बड़े चिन्तित हुए। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम भी हम संबन्ध में महात्मा जी से बातें करो। डाक्टर लोहिया भो सेवाराम उसी दिन आ गये थे। उनसे भी यही प्रार्थना की गई। हम दोनों ने बहुत देर तक बात की। महात्माजो ने हमारी बात शान्तिपूर्वक सुनी, किन्तु उस दिन अन्तिम निर्णय न कर सके। बम्बई में जब हम लोग ६ अगस्त को गिरफ्तार हो गये तो स्पेशल ट्रेन में अहमदनगर ले जाये गये। उनमें महात्माजी, उनकी पार्टी और बम्बई के कई प्रमुख लोग थे। नेताओं ने उस समय भी महात्माजी से अन्तिम बार प्रार्थना की कि वह ऐसा काम न करें। किले में मी हम लोगों को सदा इसका भय लगा रहता था। सन् ४५ में हम लोग छूटे । मैं जवाहरलालजी के साथ अलमोड़ा जेल से १४ जून को रिहा हुआ। कुछ दिनों के बाद मैं पूना में महात्मानी से मिला। उन्होंने पूछा कि सत्य और अहिंसा के बारे में अब तुम्हारे क्या विचार है ? मैंने उत्तर दिया क मैं सत्य की तो सदा से श्राराधना क्यिा करता हूँ, किन्तु इसमें मुंझको र देह है कि बिना कुछ हिस्सा के राज्य की शक्ति हम अंग्रेजो से छान सकेंगे। महामानी के सबन्ध में अनेक संस्मरण हैं, किन्तु समया- भाव से हम इससे अधिक कुछ नहीं कहते । इघर पई वर्ष से कांग्रेस में यह चर्चा चल रही थी कि कांग्रेस में कोई पार्टी नहीं रहनी चाहिए । महात्माजी इसके विरुद्ध थे। देश के स्वतन्त्र होने के बाद भी मेरी राय थी कि अभी कांग्रेस से अलग होने का समय नहीं है, क्योंकि देश संकट से गुजर रहा है। सोशलिस्ट पार्टी में इस संबन्ध में मतभेद था, किन्तु मरे मित्रों ने मेरी सलाह मानकर निर्णय को टाल दिया। मैंने यह भी साफ कर दिया था कि यदि कांग्रेस ने कोई ऐसा नियम बना दिया जिससे हम लोगों का कांग्रेस में रहना असंभव हो गया तो मैं सबसे पहले कांग्रेस छोड़ दूंगा। कोई भी व्यक्ति, जिसको अात्मसमान का ख्याल है, ऐसा नियम बनाने पर नहीं रह सकता । यदि ऐसा नियम न बनता और पार्टी कांग्रेस छोड़ने का निर्णय करती तो यह तो ठीक है कि मैं श्रादेश का पालन करता, किन्तु मैं यह नहीं कह सकता कि मैं कहाँ तक उसके पक्ष में होता। कांग्रेस के निणय के बाद मेरे सब सन्देह मिट गा और अपना निर्णय करने में मुझे एक क्षण भी नलगा। मेरे जीवन के कठिन अवसर, जिनका मेरे भविष्य पर गहरा असर पड़ा है, ऐसे