पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७१

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मेरे संस्मरण [श्राचार्य जी के जीवन का संक्षिप्त विवरण, उन्हीं के शब्दों में लिखा हुमा ] मेरा जन्म संवत् १६४६ में कार्तिक शुक्ल अष्टमी को सीतापुर में हुआ था। हम लोगों का पैतृक घर फैजाबाद में है, किंतु उस ममय मेरे पिता श्री बलदेव प्रसाद बी सीतापुर में वकालत करते थे। हमारे खानदान में सबसे पहले अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति मेरे दादा के छोटे भाई थे । अवध में अंग्रेजी हुकूमत सन् १८५६ में कायम हुई। इस कारण अवध में अंग्रेजी शिक्षा का प्रारंभ देर से हुआ। मेरे बाबा का नाम बाबू सोहनलाल था । वे पुराने कैनिंग कालेज में अध्यापक का कार्य करते थे। उन्होंने मेरे पिता और मेरे ताऊ को अंग्रेजी की शिक्षा दी। पिता जी ने कैनिंग कालेन से एफ. ए. कर वकालत की परीक्षा पास की थी। अांखों की बीमारी के कारण वे बी0 To नहीं कर सके। मेरे बाबा उनको कानून की पुस्तकें सुनाया करते थे और सुन सुन कर ही उन्होंने परीक्षा की तैयारी की थी। वकालत पास करने पर वे सीतापुर में बाबा के शिष्य मुंशी मुरलीधर जी के साथ वकालत करने लगे। दोनों सगे भाई की तरह रहते थे। दोनों की आमदनी और खर्च एक ही जगह से होते थे। मुंशी जी के कोई सन्तान न थी। वे अपने भतीजे और बड़े भाई को पुत्र के समान मानते थे। मेरे जन्म के लगभग दो वर्ष बाद मेरे दादा की मृत्यु हो जाने के कारण पिता जी को सीतापुर छोड़ना पड़ा और वे फैजाबाद में वकालत करने लगे। जब वे सीतापुर में थे, तभी उनकी धार्मिक प्रवृत्ति शुरू हो गयी थी। किसी संन्यासी के प्रभाव में श्राने से ऐसा हुआ था। वे बड़े दानशील और साविक वृत्ति के थे । वेदान्त में उनकी बड़ी अभिरुचि थी और इस शास्त्र का उनको अच्छा ज्ञान था। वे संन्यासियों का सत्संग सदा किया करते थे। जिस समय उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी, उस समय फारसी का प्रचलन था। किन्तु अपनी संस्कृति और धर्म का शान प्राप्त करने के लिए उन्होंने संस्कृत का अभ्यास किया था। वे एक नामी वकील थे, किंतु वकालत के अतिरिक्त भी उनकी अनेक दिलचस्पियां थीं। बालको के लिए उन्होंने अंग्रेजी, हिंदी और फारसी में पाठ्यपुस्तक लिखी थी। इनके अतिरिक उन्होंने कई संग्रह-ग्रंथ भी प्रकाशित किये थे। अंग्रेजी की प्राइमर तो उन्होंने मेरे बड़े भाई को पढ़ाने के लिए लिखी थी। मेरा विद्यारंभ इन्हीं पुस्तकों से हुआ था। उनको मकान बनाने और बाग लगाने का बड़ा शौक था। हमारे घरपर एक छोटा-सा पुस्तकालय भी था। जब मैं बड़ा हुआ तो गमी की छुट्टियों में इनकी देख भाल भी किया करता था। मैं अपर कह चुका हूँ कि मेरे पिता जी धार्मिक ये। और इस नाते सनातन धर्म के उपदेशक, सन्यासी और पपिरत मेरे घरपर प्रायः श्राया करते थे, किंतु पिता जी कांग्रेस और सोशल