पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/७०

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का सारा भी दे देना चाहते थे, किन्तु भस्वस्पता और काल ने इसे संभव नहीं होने दिया। इस प्रन्या का अंग्रेजी अनुवाद भी प्राचार्यत्री ने किया है। भावार्थबी ने विज्ञानवाद के महत्वपूर्ण ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद किया है । बसुन्बु ने मिशिका नामक ग्रंथ लिखानसांगने "त्रिशिका' पर विशतिमात्रता सिद्धि नामक टीका चीनी भाषा में लिखी है। पूर्स ने इस ग्रंथ का फ्रेंच में अनुवाद प्रकाशित किया था। इस बो अंथ का महत्व इसमें है कि प्रिंथिका के पूर्ववर्ती दश टीकाकारों का मत दिया गया है । इस एक पंव के प्रपन से ही, विज्ञानवाद के समस्त प्राचार्यों के मतों का कथितार्थ ज्ञात हो जाता है। प्राचार्य बी ने इसका हिन्दी अनुवाद करके विज्ञानवाद के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इसके अतिरिक्त पालिग्रंथ 'अभिधम्माथसंगहो' का भी अनुवाद किया था। उन्होंने खेमेन्द्र के प्राकृत व्याकरण का भी हिन्दी अनुवाद किया और उस पर अपनी खोबपूर्ण टिप्पणी मी लिखी। पालि व्याकरण के शान के लिए भी एक सुन्दर नोट तैयार किया था, किंतु इनके ये दोनों कार्य कुछ दिन पहले ही लापता हो गये थे। प्राचार्य जी की यह प्रबल अभिलाश थी कि बौद्ध दर्शन को फ्रेंच कृतियों का अनुवाद करके बैर दर्शन के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त कर दिया जाय। उनके निधन से राजनीति के क्षेत्र में चाहे जितनी बड़ी क्षति हुई हो किन्तु बौद्धदर्शन के विषय को निश्चय ही अपूरणीय पति हुई है । देश-विदेश में पाल और बौद्ध दर्शन के संबन्ध में शिक्षा संस्थानो या विद्वानों के द्वारा बो-यो कार्य होते थे, उन सबसे वे सदा परिचित रहते थे : बौद्ध न्याय का अध्ययन मोने नहीं किया था । बौद्धधर्म और दर्शन' नामक अपने ग्रन्थ में न्याय का अध्याय न देने से अपूर्णता पा रही थी। इधर वर्षों से लगातार रोगाक्रान्त थे, फिर भी उन्होंने बौद्ध न्याय के मूल प्रज्यों को और श्चेवास्की के 'बुद्धिष्ट लॉजिक तथा अनेक फ्रेंच ग्रन्यो का घार अध्ययन कर उस अध्याय को लिख कर ग्रन्थ पूर्ण किया। बौद्ध न्याय के इस अध्याय ने आचार्यची पर अवश्य ही निर्मम प्रहार किया। जब जब इस कार्य में उन्होंने अपने को लगाया तब तब रोगों के बड़े-बड़े अाक्रमण हुए । मृत्युशय्या पर लेटे-लेटे ही उन्होंने 'बद्धिदर्शन' के एक इबार पारि- भाषिक शब्दों के कोश के निर्माण का कार्य भी प्रारंभ किया था। पंदुराई के विश्रामकाल में उन्होंने चार सौ शब्दों का व्याख्यात्मक कोश लिखा । मृत्यु ने इस महत्व पूर्ण संकल्प को पूरो नहीं होने दिया। बो कुल्ल हो, प्राचार्यजी ने अपने ग्रन्थों एवं निबन्धों से बौद्ध दर्शन के अध्ययन का मार्ग बहुत कुछ प्रशस्त कर दिया है। इस क्षेत्र के विद्वान उनके सदा ऋणी रहो। जगतगंज काशी जगनाथ उपाध्याय