पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६३४

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५४६ बौद्ध-पदर्शन हेतु-सामग्रीवाद का निषेध श्राचार्य हेतु-प्रत्यय सामग्री से कार्य उत्पन्न होता है। इस वाद का भी खण्डन करते हैं। प्राचार्य कहते हैं कि बीजादि हेतु-प्रत्यय-सामग्री (बीन, अवनि, सलिल, ज्वलन, पवन, गगन, ऋतु आदि) से यदि फल (कार्य) उत्पन्न होता है, तो यह बताना होगा कि उस सामग्री से व्यवस्थित फल का उत्पाद होता है या अव्यवस्थित ? प्रथम पक्ष मानने पर फल का उत्पाद नहीं होगा, क्योंकि जब हेतु-प्रत्यय-सामग्री में फल अवस्थित है ही, तब उससे फल उत्पन्न कैसे होगा। इसलिए यदि कहे कि हेतु- सामग्री में फल व्यवस्थित नहीं है, तब यह बताना होगा कि ऐसी अवस्था में सामग्री से फल कैसे उत्पन्न होता है। हेतु-सामग्री में यदि फल है, तो वह गृहीत होना चाहिये; किन्तु पहीत नहीं होता। अतः सामग्री से फल उत्पन्न नहीं होता। हेतु-प्रत्यय-सामग्री में यदि फल नहीं है, तो वे हेतु-प्रत्यय नहीं है; क्योंकि ज्याला-अंगार में अंकुर नहीं है, अतः वह अंकुर का हेतु-प्रत्यय नहीं होता। एक अन्य वाद है कि हेतु-सामग्री में फल उत्पन्न करने का सामर्थ्य नहीं है, हेतु में है। सामग्री फलोत्पादन में हेतु का अनुग्रह मात्र करती है। फल की उत्पत्ति में हेतु अपना हेतुल्य विसर्ग करके निरुद्ध हो जाता है ( हेतुः फलस्योत्पत्यर्थ हेतुं दत्वा निरुध्यते )। फल की उत्पत्ति में हेतु का यही अनुग्रह है। श्राचार्य कहते हैं कि यदि फलोत्पत्ति के लिए हेतु अपना हेतुल देता है, और निरुद्ध होता है तो उसके द्वारा जो दिया जाता है, और जो निरुद्ध होता है, वे दो होंगे । इस प्रकार हेतु की दो श्रात्मा. ( स्वरूप ) होगी। यह युक्त नहीं है । इससे अर्ध शाश्वतवाद ( हेतु का एक रूप कार्यान्वयी होने के कारण शाश्वत होगा, दूसरा निरुद्ध होने के कारण विनाशी होगा ) सिद्ध होगा। एवं च, परस्पर विरुद्ध दो स्वरूपों का एक हेतु में योग मी कैसे होगा। इस विरुद्ध-द्वय की श्रापत्ति से बचने के लिए यदि यह कल्पना करें कि हेतु फल को कुछ मी अपनी सार-सत्ता न देकर सर्वात्मना निरुद्ध हो जाता है, तब कार्य को अवश्य ही अहेदक मानना पड़ेगा। इस दोष से बचने के लिए, कल्पना करें कि कार्य के साथ ही कारण-सामग्री उत्पन्न होती है, और वह फल की उपादक होती है, तो एक काल में ही कार्य और कारण की सत्ता माननी पड़ेगी। एक अन्य वाद है । उसके अनुसार कार्य हेतु-प्रत्यय-सामग्री के पहले अनागत स्वरूप में और अनागतावस्था में विद्यमान है। हेतु-सामग्री के द्वारा केवल उसकी वर्तमानावस्था उपपन्न की जाती है, वस्तुतः द्रव्य यथावस्थित ही रहता है । प्राचार्य का उत्तर है कि यदि कार्य हेतु-सामग्री से पूर्व स्वरूपतः विद्यमान है, तो वह हेतु-प्रत्यय से निरपेक्ष होगा और अहेतुक होगा। किन्तु अहेतुक पदार्थों का अस्तित्व युक्त नहीं है।