पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(ro) अब अन्त में धोखतन्त्र तथा योग विषयक साहित्य का किंचित् परिचय देना उचित प्रतीत होता है। इस विषय के बहुत से अन्य तिब्बत तथा चीन में विद्यमान है। कुछ इस देश में भी है। सभी अन्यों का प्रकाशन अभी तक नहीं हुआ और निकट भविष्य में भी होने की संभावना नहीं है। किन्तु विशिष्ट ग्रन्थों में कुछ का प्रकाशन हुश्रा है, और किसी किसी का हो मी रहा है। भारतीय पुस्तक संग्रहों में अप्रकाशित हस्तलिखित अन्यों की संख्या भी उल्लेखयोग्य है । गुह्म-समाब, उसकी टीका और भाष्यों के कुछ नाम पहले दिये गये है। मंजुश्रीमूलक का नाम भी दिया गया है। उसके प्रांतारक ग्रन्थों के नाम निम्नलिखित १. कालचक्रतन्त्र और उसकी विमलप्रभा टीका । २. श्रीसंपुट-यह योगिनी तन्त्र है। ३. समायोत्तर-तन्त्र । ४. मूलतन्त्र । ५. नामसंगीति। ६. पंचक्रम। ७. सेकोश-तिलोपा कृत । ८.सेकोशटीका-नरोपा कृत। ६. गुह्यसिदि--पद्मवज्र अथवा सरोमहवन कृत । प्रसिद्धि है कि ये प्राचार्य हेवन साधन के प्रवर्तक थे। सरोरुहवा के शिष्य अनंग- वाये । अनंगवत के प्रद्योपायविनिश्चयसिद्धि प्रांत अन्य प्रसिद्ध है। हेवन-साधन विषय के भी इन्होंने ग्रन्थ लिखे हैं । अनंगवन के शिष्य इन्द्रभूति थे । इन्होंने श्रीसम्पुट की टीका लिखी थी। इनके अतिरिक्त शनसिद्धि, सहनसिद्धि प्रभूति अन्य अन्य भी इनके नाम से उपलब्ध होते है। यह उजियान-सिद्ध अवधूत थे। इनकी छोटी भगिनी तथा शिव्या लक्ष्मीकरा ने इनके साहित्य के प्रचार करने में प्रसिद्धि प्राप्त की थी। प्रहरवा ने तस्वरलावली प्रभृति अनेक अन्यों की रचना की। डाकार्यव एक विशिष्ट ग्रन्य है। इसका प्रकाशन हो चुका है। वर्तमान समय में विनयतोष भट्टाचार्य, शशिभूषणदास गुस्स, प्रबोषचन्द्र बागची, अध्यापक तुची, मोरयो करेली, डा. गुन्पर प्रभृति कई विद्वान् इस कार्य में दचचित है। सिलवा लेकी प्रति ने मी इस क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया था, जिससे तन्त्र-शास्त्र के अध्ययन में बड़ी सुविधा मित दी है। भूमिका संक्षेप करते करते मी विस्तृत हो गयी। अधिक लिखने का स्थान नहीं है। मैं सममता हैं कि इससे अधिक लिखने का प्रयोजन भी नहीं है। मित्रवर प्राचार्य जी के अवशेष