पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६०७

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ऊनविंशमध्याय पर्शनादि का संबन्धी प्रात्मा श्रापको भी स्वीकार करना पड़ेगा | सिद्धान्ती कहता है कि जिस श्रात्मा के लिए. दर्शनादि की कल्पना है, जब वही नहीं है तो दर्शनादि कैसे होंगे। चन्द्रकीर्ति चोदक के द्वारा अाशंका उठाते हैं, और उसका उत्तर देते हैं । क्या आपने यह निश्चित कर लिया है कि श्रात्मा नहीं है ? यह किसने कहा। अभी आपने कहा है कि दर्शनादि का अभाव है, इसलिए आत्मा नहीं है। हाँ, मैंने यह कहा है। किन्तु अापने उसका ठीक अभिप्राय नहीं समझा । मैंने कहा है कि भावरूप अात्मा की सत्ता सस्वभाव नहीं है। प्रात्मा में स्वभावाभिनिवेश की निति के लिए मैंने ऐसा कहा है, किन्तु इससे उसका अभाव कल्पित नहीं किया । वस्तुतः भाव और अभाव दोनों के अभिनिवेश का परित्याग करना चाहिये। दर्शनादि से पूर्व श्रात्मा नहीं है । श्रात्मा दर्शनादि से सहभूत भी नहीं है, क्योंकि शशभृग के समान पृथक् पृथक् असिद्ध वस्तुओं का सहभाव नहीं देखा जाता। श्रात्मा और उपादान निरक्षेप हैं, और पृथक् पृथक् असिद्ध हैं। इसलिए, श्रात्मा वर्तमान भी नहीं है । अर्ध्व भी नहीं है, क्योंकि जब पूर्वकाल में दर्शनादि हों तो उत्तर काल में अात्मा हो । इस प्रकार आत्मा की परीक्षा करने पर जब वह दर्शनादि से प्राक् पश्चात् और युगपत् सिद्ध नहीं होता, तो उसके अस्तित्व या नास्तित्व की कल्पना कौन बुद्धिमान् करेगा? उपादाता और पादान के प्रभाव से पुद्गल का प्रभाव पूर्वपक्षी कहता है कि आप का यह कथन कि कर्म और कारक के समान उपादान और उपादाता की स्वाभाविक सिद्धि नहीं हो सकती, ठीक नहीं है। क्योंकि सापेक्ष पदार्थों की भी सस्वभावता सिद्ध होती है । जैसे अग्नि इन्धन की अपेक्षा करता है, किन्तु वह निःस्वभाव नहीं है। प्रत्युत उसके उध्यत्व, दाहकत्व आदि स्वाभाविक कार्यों की उपलब्धि होती है। इसी प्रकार इन्धन भी अग्नि की अपेक्षा करता है, किन्तु वह निःस्वभाव नहीं है क्योंकि उसकी महाभूतचतुष्टय- स्वभावता उपलब्ध होती है । इस दृष्टान्त से उपादान-सापेक्ष उपादाता तथा उपादातृ-सापेक्ष आदान की सत्ता सिद्ध होगी, और आपको उपादान और उपादाता की स्वभाव-सत्ता माननी पड़ेगी। अग्विदन्यास की परीक्षा सिद्धान्ती कहता है श्रापका कथन तब ठीक हो जब अग्नि-इन्धन का दृष्टान्त सिद्ध हो। दृष्टान्त की सिद्धि के लिए आपको यह बताना पड़ेगा कि अग्नि और इन्धन की सत्ता उनके परस्पर अभिन्न होने से है या भिन्न होने से दोनों पक्ष नहीं बनेंगे।