पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६०१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कनर्षिश अध्याय ५१३ संसास-बक्षण के लक्षण का निषेध उत्पाद, स्थिति और भंग की अन्य उत्पादादि से संस्कृत-लक्षणता सिद्ध करें तो अपर्यवसान दोष होगा। कौन पूर्व हो और कौन पश्चात्, इसकी व्यवस्था न होगी। इस प्रकार उत्पादादि सर्वथा असंभव है। हीनयानी कहते हैं कि अपर्यवासन दोष न लगेगा, क्योंकि मेरे मत में उत्पाद विविध हैं। एक मूल उत्पाद ', दूसरा 'उत्पादोत्पाद ' ( उत्पाद का उत्पाद)। उत्पादोत्पाद- संज्ञक उत्पाद केवल मूल उत्पाद का उत्पादक होता है । मौल उत्पाद उत्पादोत्पादक उत्पाद को उत्पन्न करता है । इस प्रकार 'परस्पर के संपादन से उत्पादादि की विलक्षणी बनेगी और अनवस्था न होगी। श्राचार्य कहते हैं कि आपके मत में जब उत्पादोत्पाद मूलोत्पाद का अनक है, तो मौलोत्पाद से अनुत्पादित उत्पादोत्पाद मौल उत्पाद को कैसे उत्पन्न करेगा ? यदि मौल उत्पाद से उत्पादित उत्पादोत्पाद को मोल का उत्पादक मानें तो यह संभव नहीं है, क्योंकि स्वयं अविद्यमान अन्य का उत्पाद कैसे करेगा । उत्पाद की उत्पाद-स्वभावताका खंडन यादी कहे कि श्राप उत्पाद का अपर उत्पाद न मानिये, किन्तु जैसे प्रदीप प्रकाश-स्वभाव होने के कारण अपने को और घटादि को प्रकाशित करता है, इसी प्रकार उत्पाद उत्पाद-स्वभाव होने के कारण अपने को और पर को उत्पन्न करेगा। सिद्धान्ती कहता है कि श्रापका यह कहना तब ठीक हो जब कि प्रदीप स्व और पर का प्रकाश करता हो,किन्तु ऐसा नहीं होता। तम का नाश, प्रकाश है; अनः विरोधी होने के कारण तम प्रदीपात्मा में नहीं है, जिसे नष्ट करके प्रदीप अपनी प्रकाशरूपता संपन्न करे। प्रदीप के देश में भी तम नहीं रहता, जिसे नष्ट कर प्रदीप में पर-प्रकाशता सिद्ध हो । उत्पद्यमान प्रदीप से भी तम हत नहीं होगा । उत्पद्यमान प्रदीप तम को प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि पालोक और अन्धकार एककालिक नहीं है। यदि प्रदीप तम को बिना प्राप्त किये उसे नष्ट करने लगे तो एकस्य प्रदीप सर्वलोकस्थ तम को नष्ट क्यों न करेगा और यदि प्रदीप को स्व और पर का प्रकाशक मानेगे तो दूसरा तम को स्व और पर का प्राच्छादक क्यों न मानेगा ? इस प्रकार प्रदीप के दृष्टान्त उत्पाद की स्व-परोत्पादकता सिद्ध नहीं होगी। प्रश्न है कि उत्पाद स्वयं उत्पन्न होकर अपना उत्पाद करता है या अनुत्पन्न उत्पन्न के उत्पादन का क्या प्रयोजन ! इसलिए सिद्ध है कि उत्पाद अपना उत्पाद नही करता । यदि स्वयं अनुत्पन भी उत्पाद अपना उत्पाद करे तो समस्त अनुत्पन्न वस्तुए अपना- अपना उत्पाद करने लगे।