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             ऊनविंश अध्याय               ४८१

की अपनी प्रतिज्ञा का साधन कैसे करेगा, और पर की प्रतिज्ञा का निराकरण भी कैसे करेगा; क्योंकि वादी-प्रतिवादी उभय-सिद्ध अनुमान से ही निराकरण संभव होता है । एक ओर पूर्व- पक्षी अपने अनुमान को निर्दुष्ट रखने के लिए दोषरहित पक्ष-हेतु-दृष्टान्तों का प्रयोग करेगा। किन्तु दूसरी ओर माध्यमिक उनमें दोषों का अभिधान करेगा नहीं, इस प्रकार वादी के दोषों का परिहार नहीं होगा; फलतः माध्यमिक परपक्ष का निराकरण नहीं कर सकेगा।

चन्द्रकीर्ति कहते हैं कि जो व्यक्ति जिस अर्थ की जिन उपपत्तियों से निश्चयपूर्वक स्वयं जानता है, वह अपना निश्चय दूमरों में भी उत्पन्न करने की इच्छा से उन उपपत्तियों का उपदेश करता है। इस न्याय से यह सिद्ध होता है कि पर को ही स्वाभ्युपगत प्रतिज्ञा की सिद्धि के लिए हेतु आदि का उपादान करना चाहिये, माध्यमिकों को नहीं । वस्तुतः दूसरे के प्रति हेतु आदि का प्रयोग नहीं होता, बल्कि अपने पक्ष के निश्चय के लिए होता है । अन्यथा उसका पक्ष स्वयं विसंवादित हो जायगा, फिर वह दूसरे को स्वप्रतिज्ञा का निश्चय क्या करा सकेगा ? इसलिए युक्तिहीन पक्ष का स्पष्ट दोष यही है कि वह स्वप्रतिज्ञार्थ के साधन में ही अपने को असमर्थ बना लेता है। ऐसी अवस्था में माध्यमिक को परपक्षीय अनुमान के बाधोद्भावन से भी कोई प्रयोजन नहीं रहता ।

माध्यमिक की दोषोद्भावन की प्रणाली

चन्द्रकीर्ति एक विशेष बात की ओर ध्यान दिलाते हैं । यद्यपि माध्यमिक की अपनी कोई प्रतिज्ञा नहीं है, इसलिए उसे अनुमान के स्वतन्त्र प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती, फिर भी उसे परपक्ष के अनुमान विरोधी दोनों का उद्भावन करना चाहिये । इसके समर्थन में वह आचार्य बुद्धपालित की प्रणाली का उल्लेख करते हैं—पदार्थ स्वत: ही उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि स्वात्मना विद्यमान की उत्पत्ति मानने में कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता । जैसे किसी को स्वात्मना विद्यमान घटादि के उत्पाद की अपेक्षा नहीं होती, इसी प्रकार स्वात्मना विद्यमान समस्त भावों का पुनःउत्पाद मानना व्यर्थ है । इस प्रकार, सांख्यों के अनुमान में माध्यमिक आचार्य बुद्धपालित ने साधर्म्य, दृष्टान्त और हेतु उपादान के द्वारा विरोध का उद्भावन किया है।

माध्यमिक के अनुमान में हेतु और दृष्टान्त के अनभिधान का दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि स्वत: उत्पादवादी सांख्य के पक्ष में अभिव्यक्त घट की पुनः अभिव्यक्ति अभीष्ट नहीं है। इस सिद्ध रूप को ही माध्यमिक दृष्टान्त के रूप में ग्रहण करेगा। इसी प्रकार सांख्य- संमत अनभिव्यक्त शक्ति रूप को ही उत्पाद-प्रतिषेध से विशेषित करके माध्यमिक अपने अनु- मान में साध्य स्वीकार करेगा । इस प्रकार माध्यमिक पक्ष में सिद्धसाधनता और विरुद्धार्थता आदि दोष नहीं लगेंगे।

अथवा स्वतः उत्पादवाद के निरास के लिए माध्यमिक सांख्य के उस अनुमान में दोषोद्भावन करेगा, जिमसे सांख्यवादी पुरुष से अतिरिक्त समस्त पदार्थों का स्वतःउत्पाद सिद्ध