पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५७४

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5 बौर-धर्म दर्शन होता है। क्योंकि श्राकाश चित्त-निमित्त है, इसलिए यह परतन्त्र में संग्रहीत होता है। किन्तु मूढ़ इस निमित्त को द्रव्यसत् कल्पित करते हैं। इस कलना में श्राकाश परिकल्पित है। अनात. द्रव्य श्राकाश को तथता का एक अपर नाम अवधारित करने से आकाश परिनिष्पन्न है। इसी प्रकार शुश्रान-बांग सिद्ध करते हैं कि अन्य संस्कृत तथा रूप-वेदना-संज्ञा-संस्कार- विज्ञान यह पाँच संस्कृत धर्म-दृष्टि के अनुसार परिकल्पित, परतन और तथता में संगृहीत हो सकते हैं। बिबभाव की सत्ता एक अन्तिम प्रश्न है कि वस्तु द्रव्यमत् है या असत् । परिकल्पित स्वभाव केवल प्रशसिसत् है, क्योंकि यह मिपा रुचि से व्यवस्थित होता है । परतन्त्र प्रति और वस्तुसत् दोनों है। पिण्ड, समुदाय, ( संचय, सामग्री ) यथा घटादि, प्राप्त हैं। चित्त-नत्त-रूप प्रत्ययनित हैं। अतः वह वस्तुमत् हैं । परिनिःपन्न केवल द्रव्यसत् है, क्योंकि यह प्रत्यया- धीन नहीं है। किन्तु यह तीन स्वभाव मिन्न नहीं है, क्योकि पर्गिनापन्न पग्नन्त्र का द्रव्यमन् स्वमात्र है, और परिकल्पित का परतन्त्र से व्यतिरेक नहीं है। किन्तु यद्यपि यह हक दृष्णि से भिन्न नहीं है, तथापि दूसरी दृष्टि से यह अभिन्न नहीं है, क्योंकि मिथ्याग्रह, प्रत्ययोद्भव और द्रव्यमत् - स्वभाव भिन्न है। निःस्वभाव-वाद यह विचार शंकर के वेदान्तमत के अत्यन्त समीप है | शुश्रान-च्चांग इस खतरे को समझते हैं। माध्यमिकों के प्रतिवाद करने पर वह हम प्रश्न का विचार करते हैं कि यदि तीन स्वभाव हैं तो भगवान् की यह शिक्षा क्या है कि सब धर्म निःस्वभाव हैं। दूसरे शब्दों में यदि धर्म के तीन श्राकार हैं तो भगवान् का यह उपदेश क्यों है कि वह शून्य और निःस्वभाव हैं यह प्रश्न बड़े महत्व का है। यह देखना है कि शुश्रान-बाँग कैसे नागार्जुन की शून्यता का त्याग कर वस्तुत्री की विज्ञान-सत्ता को व्यवस्थित करत हैं। उनका उत्तर यह है कि इन तीन स्वभावों में से प्रत्येक अपने नाकार में नि.रभाव है। त्रिविध स्वभाव की त्रिविध निःस्वभावना है। इस अभिमन्धि से भगवान ने सत्र धर्मों की निःस्त्र- भावता की देशना की है। परिकस्थित निःस्वभाव है, क्योंकि इसका यही लक्षण है ( लक्षणेन )। परतन्त्र की निःस्वभावता इसलिए है, क्योंकि इसका स्वयंभाव नहीं है। परिनिष्पन्न की निःस्खभाक्ता इसलिए है, क्योंकि यह परिकल्पित आत्म-धर्म से शल्य है । परिनिष्पन्न धर्म परमार्थ है। यह भूततथता है । यह विज्ञप्तिमात्रता है । यह तीन निःस्वभावना प्रमशः लक्षण-निःस्वभावना, उत्पनि-निःस्वभावता, परमार्थ- निःस्वभावता है।