पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५५७

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अथवश भध्याय मनोविज्ञान इसका कान्त-श्राश्रय है । अचित्तकावस्था आदि में मनोविज्ञान व्युच्छिन्न होता है। घन पश्चात् इसकी पुनः उत्पत्ति होती है, तो सक्षम और अष्टम विज्ञान इसके क्रान्त-प्राश्रय होते हैं। मन का विचार है कि अचित्तकावस्था के पश्चात् मनोविज्ञान का कान्त-श्राश्रय सभाग अतीत क्षण ( इस अवस्था से पूर्व का मनोविज्ञान ) होता है। इस बात को नन्द उन पांच विधानों के लिए क्यों नहीं स्वीकार करते जिनकी पुनरुत्पत्ति उपच्छेद के पश्चात् होती है । यदि पंच-विज्ञान के लिए यह वाद युक्त नहीं है तो मनोविज्ञान के लिए भी नहीं है। ससम और माम विज्ञान-जब प्रथम बार समता-ज्ञान संप्रयुक्त मनस् की उत्पत्ति होती है, तब यह प्रत्यक्ष ही मनोविज्ञान के कारण होती है । अतः मनोविज्ञान इसका क्रान्त-श्राश्रय है । मनस् का क्रान्त-माश्रय मनस् भी है । इसी प्रकार श्रादर्श-जान से संप्रयुक्त अष्टम विमज-विज्ञान की उत्पत्ति सप्तम और षष्ठ विज्ञान के क्रान्त-श्राश्रय से होती है । अष्टम विज्ञान का क्रान्त-अाश्रय नष्टम भी है। धर्मपाल कामत-स्थिरमति का सिद्धान्त सुष्ट नहीं है । कौन से धर्म मान्त-आश्रय हो सकते हैं ? जो धर्म सालंबन है, जो अधिपति हैं, जो समनन्तर-प्रत्यय हैं। जिन धर्मों में यह लक्षण होते हैं-अधिरति-चित्त के पूर्व क्षण-वह उत्तर चित्त-चैत्त के प्रति का त-श्राश्रय होते हैं, क्योंकि वह मार्ग का उद्घाटन करते हैं, और उनको इस प्रकार आकृष्ट करते हैं कि उनकी उपत्ति होती है । यह कंवल चित्त हैं, चैत्त या रूपादि नहीं है । एक ही श्राश्रय में पाठ विज्ञान एक साथ प्रवर्तित हो सकते हैं । एक विमभाग विज्ञान दूसरे विसभाग विज्ञान का क्रान्त-अाश्रय कैसे हो सकता है। यदि कोई यह कहे कि यह क्रान्त-याश्रय हो सकता है तो यह परिणाम निकलता है कि विसभाग विज्ञान एक साथ उत्पन्न नहीं हो सकते । किन्तु यह सर्वास्तिवादिन् का मत है। एक ही अाश्रय में भिन्न विज्ञान-चाहे अल्पसंख्या में या बहुसंख्या में एक साथ उत्पन्न होते हैं । यदि कोई यह मानता है कि यह एक दूसरे के समनन्तर-प्रत्यय है, तो रूप भी रूप का समनन्तर-प्रत्यय होगा । किन्तु शास्त्र कहता है कि केवल चित्त-चैत्त समनन्तर-प्रत्यय है। हमारा सिद्धान्त है कि पाठ विज्ञानों में से प्रत्येक स्वजाति के धर्मों का प्रान्त-आश्रय है। चैत्तों के लिए भी यही नियम है। मगर का मालंकन अब हम मनस् के श्रालंबन का विचार करते हैं । मनस् का श्रालंबन वही विज्ञान है जो उसका प्राश्रय है, अर्थात् श्रालय-विज्ञान है। हम यह भी विचार करेंगे कि आलंबन श्रालय-विज्ञान का स्वभाव है या यह केवल उसका श्राकार है, जिन्हें प्रालय-विधान स्वरसेन धारण करता है ( बीच, चैत, धर्म )। मद कामा-मनस् का पालंबन प्रालय-विशान का स्वभाव और ,तत्संप्रयुक्त चेत्तं है। निमित्तमाग और प्रालय-विज्ञान के बीज मनस् के श्रालंबन नहीं हैं। वस्तुतः योगशास्त्र