पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५४६

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बौद-धर्म-पर्यन यह सूक्ष्म विज्ञान अष्टम विज्ञान ही हो सकता है, क्योंकि कोई परिचित मनोविज्ञान असंविदित नहीं है। ३. मरण के समीप 'शीत' स्पष्टव्य-काय में ईषत् ईत् उत्पन्न होता है। यदि कोई अष्टम विज्ञान न हो जो काय को स्वीकृत करता है, तो शनैः शनैः शीत का उत्पाद न हो । यह अष्टम विज्ञान काय के सत्र भागों को उपात्त करता है। जहाँ से यह अपना उपग्रहण छोड़ता है वहाँ शीत उत्पन्न होता है। क्योंकि जीवित, उष्म और विज्ञान असंप्रयुक्त नहीं हैं। जिस भाग में शीतोत्पाद होता है वह सत्वाख्य नहीं रहता। पहले पाँच विज्ञानों के विशेष प्राश्रय हैं। यह समस्त काय को उपगृहीत नहीं करते । शेव रहा छठा विज्ञान-मनोविज्ञान । यह काय में सदा नहीं पाया जाता । यह प्रायः ब्युच्छिन्न होता है, और हम नहीं देखते कि तब शीतोत्पाद होता है। इसका श्रालंबन स्थिर नहीं है। अतः अष्टम विज्ञान सिद्ध है। ७. विज्ञान और नामरूप सूत्र के अनुसार नामरूप-प्रत्ययवश विज्ञान होता है, और विज्ञान-प्रत्ययवश नामरूप होता है। यह दो धर्म नहकलाप के सदृश अन्योन्याश्रित हैं और एक साथ प्रवर्तित होते हैं। प्रश्न यह है कि यह कौन-सा विज्ञान है ? इसी सूत्र में नामरूप का व्याख्यान है : नामन् चार अरूपी कन्ध और रूप से कललादि समझना चाहिये । यह द्विक नामरूप (पंचकन्ध ) और विज्ञान नकलाप के समान अन्योन्याश्रय से अवस्थित हैं। यह एक दूसरे के प्रत्यय है; यह सहभू हैं और एक दूसरे से पृथक् नहीं होते। क्या आपका यह कहना है कि इस नामन् से पंच विज्ञान-काय इष्ट है, और नो विज्ञान इस नामन् ( और रूप ) का आश्रय है वह मनोविज्ञान है। किन्तु श्राप भूल जाते हैं कि कललादि अवस्था में यह पांच विज्ञान नहीं होते, और इसलिए उन्हें नामन की संज्ञा नहीं दी जा सकती। पुनः छः प्रवृत्ति-विज्ञान का नैरन्तर्य नहीं है। वह नामरूप के आदान का सामर्थ्य नहीं रखते । यह नहीं कहा जा मकता कि वह नामरूप के प्रत्यय है । अतः 'विज्ञान' से सूत्र को अष्टम विज्ञान इष्ट है। सूत्रवचन है कि सब सत्व आहार-स्थितिक हैं। सूत्रवचन है कि आहार चार है:- कवडीकार, स्पर्श, मनःसंचेतन और विज्ञान । मनःसंचेतन छन्दःसहवर्तिनी सासव चेतना है, बी मनोश वस्तु की अभिलाया करती है । यह चेतना विज्ञान-संप्रयुक्त है, किन्तु इसे श्राहार की मंशा तभी मिलती है जब यह मनोविज्ञान से संप्रयुक्त होती है।