पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५१९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अष्टादश अध्याय ४३१ शुभान-वांग सौत्रान्तिक और सर्वास्तिवादी-वैभाषिक मत का प्रतिषेध करते हैं, जिनके अनुसार विज्ञान का बालंबन-प्रत्यय वह है, जो स्वाकार (स्वाभास ) विज्ञान का निर्वर्तन करता है। यह कहते हैं कि बाह्य अर्थ स्वाभास विशन का जनक होता है । इसलिए उनको विज्ञान का श्रालंबन-प्रत्यय इष्ट है। सौत्रान्तिकों के अनुसार श्रालंबन-प्रत्यय संचित (संहत ) परमाणु है । बत्र चक्षुर्विज्ञान रूप की उपलब्धि करता है, तब यह परमाणुओं को प्राप्त नहीं होता, किन्तु केवल संचित को ही प्राप्त होता है, क्योंकि यह विज्ञान संचिताकार होता है ( तदाकारत्वात् । हम संचित नील देखते हैं, नील के परमाणु नहीं देखते ), श्रतः पंच विज्ञानकाय का पालंबन संचित है। शुश्रान-बांग के लिए संघात द्रव्य-सत् नहीं है। वह सांवृत है। इस कारण वह विज्ञप्ति का अर्थ नहीं हो सकता, और इसलिए वह श्रालंबन-प्रत्यय नहीं है। बाह्यार्थ के बिना ही संचिताकार विज्ञान उत्पन्न होता है। वैभाषिक मत के अनुसार विज्ञान का बालबन-प्रत्यय एक एक परमाणु है। प्रत्येक परमाणु अन्य निरपेक्ष्य और अतीन्द्रिय होता है, किन्तु बहुत से परस्परापेक्ष्य और इन्द्रिय-ग्राह्य होते हैं । जब बहु परमाणु एक दूसरे की अपेक्षा करते है, तब स्थूल लक्षण की उत्पत्ति होती हैजो पंच विज्ञानकाय का विषय है। यह द्रव्य-सत् है, अत: यह बालबन-प्रत्यय है। इसका खंडन करते हुए स्थिरमति कहते है कि सापेक्ष और निरपेक्ष अवस्था में परमाणु के अात्मातिशय का अभाव है। इसलिए, या तो परमाणु अतीन्द्रिय है, या इन्द्रियमान हैं। यदि परमाणु परस्पर अपेक्षा कर विज्ञान के विषय होते है, तो यह जो घटकुडयादि नाकार-भेद होता है, वह विज्ञान में न होगा, क्योंकि परमाणु तदाकार नहीं है । पुनः यह भी युक्त नहीं है कि विज्ञानं का अन्य निर्भास हो, और विषय का अन्य श्राकार तो; क्योंकि इसमें अतिप्रसंग दोष होगा। पुनः परमाणु स्तंभादिवत् परमार्थतः नहीं हैं। उनका अकि-मध्य-पर भाग होता है । अथवा उसके अनभ्युपगम में पूर्वदक्षिणादि दिग्भेद परमाणु का न होगा, अत: विज्ञानवत् परमाणु का अमूर्तत्व और प्रदेशस्थत्व होगा। इस प्रकार बालार्थ के अभाव में विज्ञान ही अर्थाकार स्पन्न होता है [त्रिंशिका, पृ० १६] । सर्वास्तिवादी के अनुसार एक-एक परमाणु समस्तावस्था में विज्ञान का प्रालंबन-प्रत्यय है । परमाणु अतीन्द्रिय है, किन्तु समस्त का प्रत्यक्षत्व है [ अभिधर्मकोण, ३ । पृ. २१३ ]। इसके उत्तर में विज्ञानवादी कहते हैं कि परमाणु का लक्षण या प्राकार विज्ञान में प्रतिविम्बित नहीं होता। संहत का लक्षण परमाणुगों में नहीं होता, क्योंकि असेहतावस्या में यह लक्षण उनमें नहीं पाया जाता । असंहतावस्था से संहतावस्या में परमाणुओं का कोई आत्मातिशय नहीं होता। दोनों अवस्थाओं में परमाणु पंच विज्ञान के श्रालंबन नहीं होते (विग्नाग)।