पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५१३

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सवय बनाय "२५ तुल्य, नियमत की परीक्षा-इसके पश्चात् हमारे ग्रन्थकार निम्रन्यों के मत का खंडन करते हैं। निर्ग्रन्थ श्रात्मा को नित्यस्थ ( कूटस्थ ) मानते हैं, किंतु कहते है कि इसका परिमाण शरीर के अनुसार दीर्घ या हस्व होता है । यह युक्तिक्षम नहीं है, क्योंकि इस कूटस्थ श्रात्मा का स्व- शरीर के अनुसार विकास-संकोच नहीं हो सकता। यदि वंशी की वायु के समान इसका विकास- संकोच हो तो यह कूटस्थ नहीं है । पुनः शरीरों के बहुत्व से छिन्न होने के कारण इसकी एकता कहाँ है । (पृ. १३) हीनयानी मखों की परीक्षा--अब हीनयान के अंतर्गत कतिपय मतवाद रह पाते है, जिनके अनुसार श्रात्मा पंचस्कंधात्मक है, या स्कंधों से व्यतिरिक्त है ( व्यतिरेको ), या न स्कंधों से अन्य है और न अनन्य। पहले पक्ष में एकता और निस्यता के बिना यह प्रात्मा क्या है। पुन: आध्यात्मिक रूप अर्थात् पंचेन्द्रिय श्रात्मा नहीं है, क्योंकि यह बाह्यरूप के सदृश परिमाण वाला और सावरण है। चित्त-चैत्त भी श्रात्मा नहीं है। नित्त-चैत अविच्छिन्न संतान में भी अवस्थित नहीं होते और नो हेतु-प्रत्ययाधीन है, कैसे अात्मा अवधारित हो सकते हैं। अन्य संस्कृत अर्थात् विप्रयुक्त-संस्कार और अविज्ञप्ति-रूप भी श्रात्मा नहीं हैं, क्योंकि वह बोधस्वरूप नहीं है । पुनः श्रात्मा स्कन्ध-व्यतिरको भी नहीं है, क्योंकि स्कन्धों से व्यतिरिकामा, अाफाश के कारक-वेदक नहीं हो सकता। पुनः वात्सीपुत्रीयों का मत कि-पुद्गल न स्कंधों से अन्य है और न अनन्य; युक्तियुक्त नहीं है । इस कल्पित द्रव्य में---जो स्कंधों का उपादान लेकर ( उपादाय ) न पंचस्कंध से व्यतिरिक्त है और न पंचस्कंध है, जिस प्रकार-घट मृत्तिका से न भिन्न है, न अभिन्न; हम आत्मा को नहीं पाते । श्रात्मा प्रतिसत् है ( पृ० १४)। अब केवल विज्ञान का प्रश्न रह जाता है । शुभान-व्यांग दासीपुत्रीयों से पूछते हैं कि क्या यह श्रात्मा है, जो आत्म-प्रत्यय का विषय है, श्रात्मदृष्टि का श्रालंबन है। यदि श्रात्मा श्रामदृष्टि का विस्य नहीं है तो आप कैसे जानते हैं कि श्रात्मा है । यदि यह इसका विषय है तो श्रात्मदृष्टि को विपर्यास न होना चाहिये, जैसे चित्त जो रूपादि वस्तुसत् को पालवन बनाता है, विपर्यास में संग्रहीत नहीं है । बौद्ध श्रात्मा के अस्तित्व को कैसे स्वीकार कर सकता है। भातागम श्रात्मदृष्टि का प्रतिषेध करता है, नैरात्म्य का प्राशंस करता है, और कहता है कि श्रात्माभिनिवेश संसार का पोषण करता है । क्या यह माना जा सकता है कि मिथ्याहष्टि निर्वाण का श्रावाहक हो सकती है १ अथवा सम्यगदृष्टि संसार में हेतु है ? श्रात्मदृष्टि का श्रालंबन निश्चय ही दासत् श्रात्मा नहीं है किन्तु स्कंधमात्र है, जो श्राध्यामिक विज्ञान का परिणाम है। पुनः शुश्रान-च्वाँग तीर्थिकों से पूछते है कि प्रात्मा सक्रिय है अथवा निष्क्रिय । यदि सक्रिय है तो यह आत्मा नहीं है, धर्म ( फेनामेनल ) है | यदि निष्क्रिय है, तो यह स्पष्ट ही असत् है । पुनः सांख्यवादी कहते है कि श्रात्मा स्वयं चैतन्यात्मक है, और वैशेषिक कहते हैं कि XY