पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५०९

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बहारमध्यान ४२१ अन्तिम प्रश्न-1 -यदि यह सब विशतिमात्र ही है, यदि विशति का विषय अर्थान्तर नहीं है, तो क्या वस्तुतः इसको स्वचित्तशान होता है ? वसुबन्धु कहते हैं कि स्वचित्तशान धर्मों के निरभिलाप्य प्रात्मा को नहीं जानता, बो केवल बुद्ध का गोचर है । इस अज्ञान के कारण खचिचहान और परचित्तशान दोनों यथार्य नहीं है, क्योंकि ग्राष-प्राहक-विकल्प अग्रहीण है, और इसलिए प्रतिभास वितथ है। अन्त में वह कहते हैं कि विज्ञप्तिमात्रता के सर्व प्रकार अचिन्त्य है, क्योंकि वह तर्क के विषय नहीं है। केवल बुद्धों के ही यह सर्वथा गोचर हैं। उनका सर्व शेय का सर्वाकार ज्ञान अव्याहत होता है।