पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४५०

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२६२ बौद्ध धर्म दर्शन करते हैं, तो हम देखते हैं कि एक का भाव होने पर सबका भाव होता है, और एक का अभाव होने पर सबका अभाव होता है। अतः उनका परस्पर हेतु-फल-भाव युक्त है। सौत्रान्तिक हम मानते हैं कि सहोत्पन्न धर्मों में एक धर्म दूसरे धर्म का हेतु हो सकता है । चतुरिन्द्रिय चक्षुर्विशान की उत्पत्ति में हेतु है, किन्तु सहोत्पन्न धर्म परस्पर हेतु और फल कैसे होगे? सर्वास्तिवादी हमने जो हेतु-फल-भाव का निर्देश किया है, उससे अन्योन्य हेतु-फल- भाव व्यवस्थापित होता है। जब चित्त का भाव होता है, तब चैतों का भाव होता है और अन्योन्य । सौत्रान्तिक-किन्तु उस अवस्था में सर्वास्तिवादी को अपने सिद्धान्त को बदलना होगा। वास्तव में उन्होंने उपादाय-रूप के अन्योन्य हेतु-फल-भाव का निबंध किया है, यद्यपि रूप का ग्स के बिना अस्तित्व नहीं होता । उन्होंने उपादाय-रूप और महातों के अनुलक्षण और चित्त के अन्योन्य हेतु-फल-भाव का प्रतिषेध किया है । सर्वास्तिवादी यथा त्रिदण्ड का अन्योन्य-बल से अवस्थान होता है, उसी प्रकार सहभूचित्त-वैतादि का हेतु-फल-भात्र सिद्ध है। सौत्रान्तिक–इम नये दृष्टान्त की मीमांसा होनी चाहिये । प्रश्न है कि क्या विदण्ड का अवस्थान सहोत्पन्न तीन दण्डों के बल से होता है, अथवा क्या जिम प्रकार पूर्व सामग्रीवश उनका सहभाव होता है, उसी प्रकार पश्चात् अन्योन्याश्रित का रत्वाद नहीं होता ? पुनः अन्योन्य बल के अतिरिक्त अन्य किचित् भी यहाँ होता है-सूत्रक, शंकुक, धारिका पृथिवी । किन्तु सर्वास्तिवाद का कहना है कि संह के हेतु से अन्य हेतु भी होते हैं, अर्थात् सभाग-हेतु, सर्वत्रग-हेतु, विपाक हेतु जो सूत्रकादि स्थानीय है । अत: सामू हेतु सिद्ध है। २. सभाग-हेतु-सदृश धर्म सभाग-हेतु है । सभाग सभाग के प्रभार हेतु है । पाँच कुशल-स्कन्ध पाँच कुशल-स्कन्ध के सभाग-हेतु हैं । एक निकाय सभाग में प्रथम गर्भावस्था दश अवस्थाओं का समाग-हेतु है । प्रत्येक श्रवस्था का पूर्व क्षण इस अवस्था के अपर जग का गभाग-हेतु। समान जातीय अनन्तर निकाय सभाग में पूर्वजन्म की प्रत्येक दश अवस्थाओं का सभाग हेतु है । यब, ब्रीहि, श्रादि बाय अर्थों का भी ऐसा ही है । सभाग-हेतुत्व स्वसन्तान में ही होता है । यव का सभाग-हेतु है, शालि का नहीं। सब सभाग-धर्म सभाग-धर्मों के सभाग-हेतु नहीं हैं। वे सभाग-धर्म सभाम-हेतु है, जो स्वनिकाय और स्वभमि के हैं | स्वभूमि का नियम केवल सासब धर्मों के लिए, है, अनासव- धों के लिए नहीं है । धर्म पाँच निकायों में विभक्त है; यथा-~~-बह चार सत्यों में से एक एक के दर्शन से हेय हैं, या भावना-हेय है। धर्मों की नो भूमियां हैं, वे काम-धातु चार ध्यानों में से किसी एक के हैं, या चार थारू यो में से किसी एक के हैं । दुःख-दर्शन-