पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४४५

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पंचदा अन्याय अन्य चित्त-विप्रयुक्त संस्कार और रूपी धर्म हेतु-प्रत्यय और अधिपति' के कारण उत्पन्न होते हैं। रूपी धर्मों के संबन्ध में इतना विशेष कहना है कि महाभूत और भौतिक कैसे परस्पर हेतु-प्रत्यय होते हैं। पृथ्वी-धातु श्रादि चार भूत, भूत-चतुष्क के सभाग-हेतु और सहभू-हेतु है। भूत-चतुष्टय रूप, रसादि भौतिकों के पाँच प्रकार से हेतु है-जनन-हेतु, निश्रय-हेतु, उपस्तम्भ- हेतु, उपवृंहण-हेतु । भौतिक स्तों से उत्पन्न होते हैं। उत्पन्न होकर भूत का अनुविधान करते हैं। भूतों का श्राधार लेते हैं। पुनः भूत भौतिकों के अनुच्छेद और वृद्धि में हेतु है। अतः भूत भौतिकों के जन्म-हेतु, विकार-हेतु, श्राधार-हेतु, स्थिति-हेतु, और वृद्धि हेतु हैं । भौतिक भौतिकों के तीन प्रकार से हेतु है--सहमू, सभाग' और विपाक-हेतु। हम कारण-हेतु का उल्लेख नहीं करते, क्योंकि सब धर्म सब धर्मों के कारण हेतु है। १.चितानुपरिवत्ति काय-वाक् कर्म जो भौतिक हैं, और संवर प्रकार के हैं (प्यान-संवर और अनासव ) सहभू-हेतु है। २. सब उत्पन भौतिक सभाग-भौतिकों के सभाग-हेतु है। ३. काय-वाक् कर्म विपाक-हेतु हैं । चक्षु-कर्म विपाकादि से उत्पादित होता है । भौतिक एक प्रकार से भूतों के हेतु है। काय-वाक् कर्म भूतो का विषाक-फल के रूप में उत्पाद करते हैं। स्वविरवाद के अनुसार प्रत्यय स्थविरवाद के अनुसार २४ प्रत्यय हैं। १. हेतु प्रत्यय-वह धर्म है, जो मूलभाव से उपकारक है । यह धर्मों को सुप्रतिष्ठित करता है, यथा-शालि का शालि-बीन । २. पालंबन-वह धर्म है, जो श्रालंबनभाव से उपकारक है, यथा-रूपायतन चक्षु- विशान-धातु का बालबन है। ३. अधिपति'--वह धर्म है, जो गुरुभाव से उपकारक है । जब छन्द, अन और ज्येष्ठ होकर चित्त प्रवृत्त होता है, तब छन्द अधिपति' होता है । दूसरा चैतसिक नहीं। ४. अन्तर–बह धर्म है, जो अनन्तर भाष से उपकारक है। ५. समनन्सर वह धर्म है, जो समनन्तरभाव से उपकारक है। ये दोनों एक है, नाम का भेद है, अर्थ में भेद नहीं है । यथा-चतुर्विज्ञान-धातु मनोधातु का अनन्तर है। चक्षुर्विशान-धातु के अनन्तर मनोधातु, मनोधात के अनन्तर मनोविज्ञान-धातु, यह चित्त-नियम है। यह नियम पूर्व-पूर्व चित्त के कारण समृद्ध होता है, अन्यथा नहीं। अतः अपने अपने अनन्तर अनुरूप चित्तोत्पाद के उत्पादन में समर्थ धर्म अनन्तरं है । १. सहजासह धर्म है, जो सहोत्पादभाव से उपकारक है। यथा--प्रकाश का प्रदीप सहजात है। चार अरूपो स्कन्ध एक दूसरे के सहजात-प्रत्यय हैं, इसी प्रकार चार