पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४२३

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पंचदश अध्याय विज्ञानवादी दश महाभूमिकों को दो मागों में विभक्त करते हैं। मनस्कार, स्पर्श, वेदना, संशा, चेतना सर्वग हैं, क्योंकि जब चित्त उसन्न होता है, तब मनस्कारादि पाँच धर्मों का होना श्रावश्यक है । अतः यह सर्वग है। शेष पाँच विनियत हैं। इनका साधारण विषय है । इनका श्रालंबन, विषयवस्तु नियत है। ..वेदना--त्रिविध अनुभव है:-सुखा', दुःखा', अदुःखासुखा । २.चेतना--वह है, जो चित्त का अभिसंस्कार करती है । ३. संशा-विषय के निमित्त (पुरुष, स्त्री आदि) का ग्रहण करती है । १. छन्द-कार्य की इच्छा है ( कर्तुकाम्यता)। अभिप्रेत वस्तु के प्रति अभिलार, कार्यारंभ का सनिश्चय इसका कर्म है। ५. स्पर्श इन्द्रिय-विषय-विज्ञान के सन्निपात से संजात स्पृष्टि है। अन्य शब्दों में यह वह धर्म है, जिसके योग से मानों इन्द्रिय. विश्य और विज्ञान अन्योन्य का स्पर्श करते हैं। ६. मति ( प्रज्ञा )-धर्मों का विचय है | ७. स्मृति-प्रालंबन का असंप्रमोप है । यह वह धर्म है, जिसके योग से मन अालंबन को विस्मृत नहीं करता। ८. मनस्कार-चित्त का प्राभोग है। यह बालंबन में चित्त का आवर्जन, अब- धारण है। १. अधिमोक्ष- -श्रालंबन में गुणों का अवधारण है । विज्ञानवादी-यथानिश्चय धारणा । स्थविरवादी -ग्रालंबन में निश्चल भाव से स्थिति । १०. समाधि-चित्त की एकाग्रता है। विज्ञानवादियों के अनुसार अन्तिम पाँच सर्वग नहीं हैं। छन्द सर्वग नहीं है, क्योंकि यदि हेतु या श्रालंबन की दुर्बलता से जिज्ञासा का अभाव हो, तो छन्द के बिना ही संज्ञा सहज रूप से होती है। किन्तु संघभद्र उत्तर में कहते हैं कि चित्त-चैत्त अभिलाष के बल से बालंबन का ग्रहण करते है क्योंकि सूत्र कहता है कि सब धर्मों का मूल छन्द है । विज्ञानवादी कहता है कि यह मत असमीचीन है, क्योंकि मनस्कार के बल से चित्त बालंबन का ग्रहण करता है। श्रागम कहता है कि मनस्कार के संमुख होने से विज्ञान उत्पन्न होता है। कहीं यह नहीं कहा है कि केवल छन्द में यह सामर्थ्य होता है। सूत्र यह भी कहता है कि सब धर्म तृष्णा से उत्पन्न होते है । क्या सर्वास्तिवादी यह मानते हैं कि नित्त-चत्त की उत्पत्ति तृष्णा के बल से होती है ? विज्ञानवादी कहते हैं कि यदि किमी निधि वस्तु के विषय में चित्त व्यवसित नहीं है, तो अधिमोक्ष नहीं है । इसलिए, अधिमोक्ष सवंग नहीं है। संघभद्र उत्तर देते हैं कि जब चित्त- चैत्त अपने बालंबन को ग्रहण करते हैं, तो अविघ्नभाव के कारण सब अधिमोक्ष से सहगत होते हैं । विज्ञानवादी उत्तर देता है कि यदि आप अधिमोक्ष उसे कहते हैं, जो चित्त-वैत्तों के लिए विन उपस्थित नहीं करता, तो हप कहेंगे कि चित्त-चैत्तों को छोड़कर सब धर्म विभकारी