पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४२२

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पौरस्पर्म-पर्शन चैत था चैतसिक-धर्म चैत्त षड्विशान के तुल्य चित्त के विभाग नहीं हैं। ये पृथक्-पृथक् धर्म है, यद्यपि चित्त और चैत्त एक दूसरे के बिना उत्पन्न नहीं होते। सर्वास्तिवाद के अनुसार चैत्त महाभूमि- कादि भेद से पंचविध है :- १. नो चित्त सर्व-चित्त-सहगत है; वह महाभूमिक है । २. जो सर्व-कुशल-चित्त-सहगत है, वह कुशल-महाभूमिक है । ३. जो सर्व-शिष्ट-चित्त-सहगत है, वह केश-महाभूमिक है । ४. जो सर्व-अकुशल-चित्त-सहगत है, वह अकुशक-महाभूमिक है । ५. जिनकी भूमि परीत्त-लेश है, वे परीस-शभूमिक हैं । 'भूमि' का अर्थ उत्पत्ति-विषय है । किसी धर्म का उत्पत्ति-स्थान उस धर्म की भूमि है । दस महामूमिक महाभूमिक दश हैं :-वेदना, चेतना, संज्ञा, छन्द, स्पर्श, मति, स्मृति, मनस्कार, अधिमोक्ष और समाधि । ये राई चित्त में सह वर्तमान होते हैं। वैभाषिक सिद्धान्तों के अनुसार ये दश धर्म सर्व-चित्त-क्षण में होते हैं। 'महाभूमिः नाम इसलिए, है कि यह महान धर्मों की भूमि है, उत्पत्ति-विश्य है । स्थविरवाद-विज्ञानवाद-विरबाद के अनुमार सर्व-साधारण चित्त सात हैं :- स्पर्श, वेदना, संज्ञा, चेतना, एकाग्रता, जीविनेन्द्रिय और मनसिकार । जीवितेन्द्रिय को वर्जित कर शे। छः दश-महाभूमिक में संग्रहीत है। जीवितेन्द्रिय के सर्वास्तिवादी-विज्ञानवादी चित्त-विप्रयुक्त धर्म मानते हैं । यह जीवितेन्द्रिय रूप-जीवित से भिर है, किन्तु इसके लक्षण उसके समान हैं । रूप-जीवित रूप-धर्मों का जीवित है । वह सहजात रूप धर्मों का अनुपालन करता है । यह जीवित सहजात अरूप-धर्मों का अनुपालन करता है । इतन ही दोनों में भेद है । इनके अतिरिक्त निम्न छः प्रकीर्णक हैं। वितर्क, विचार, अधिमोक्ष, वीर्य, प्रीति, छन्द, [अभिधम्मत्थसंगहो, १३ ] | ये तेरह चैतसिक धर्म अन्यसमान कहलाते हैं, क्योंकि यह कुशल-अकुशल-अव्याकृत चित्तों से समानभाव से संप्रयुक्त होते हैं । छ: प्रकीर्णक में से अधिमोद और छन्द दश-महाभूमिक में परिगणित हैं। सर्वास्तिवादियों और विज्ञान- वादियों के अनुसार वितर्क, विचार, अव्याकृत चतसिक हैं। 'प्रीतिः सौमनस्य का प्रकार है, और इमलिए. वेदना का एक श्राकार है । 'मति प्रर है । स्थविरवादी प्रज्ञा को शोभन तासक में परिगणित करते हैं। 'वीर्य' के स्थान में सर्वास्ि वादी की गणना में 'स्मृति' है । मस्तिवा नार्य को कुशल-महाभूमिक मानते हैं । स्थविरवाद स्मृति को शोभन-चैतसिक मानते हैं । विशुद्धभग्गो के विभाग भिन्न है । इसमें सर्वसाधारण प्रकीर्णक, अन्यसमान और शोभन चसिकों के विभाग का अन्य क्रम है। इस क्रम में सः साधारण और कुशल चैतसिकों में विशेष नहीं किया गया है। बीस नियत स्वरूप से आगत पाँच अनियत है, और चार येवापनक हैं ।