पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४१६

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बौदलाल विषय परिमाण-प्रश्न है कि क्या यह मानना चाहिये कि इन्द्रिय प्रात्म-परिमाण- तुल्य विषय का ही ग्रहण करते है, अथवा ये इन्द्रिय निरपेक्ष भाव से आत्म-परिमाण तुल्य एवं अतुल्य अर्थ का ग्रहण करते हैं ? प्राणादि तीन इन्द्रिय तुल्य परिणाम के विषय का ग्रहण करते हैं। प्राण, निहा, और काय-इन्द्रिय नियतसख्यक परमाणु-विषय के समानसंख्यक परमाणुओं को प्राप्त कर विज्ञान का उत्पाद करते हैं। किन्तु चतु-श्रोत्र के लिए कोई नियम नहीं है । कभी विषय इन्द्रिय से स्वल्प होता है, जब बालान को देखते हैं, कभी कभी इन्द्रियहल्य होता है, जब द्राक्षाफल का दर्शन करते हैं, कभी इन्द्रिय से बड़ा होता है, जब उन्मिषितमात्र चतु से पर्वत को देखते हैं। शब्द के लिए भी यही नियम है। षष्ठ विज्ञान का आश्रय अतीत होता है, और प्रथम पाँच का आभय सहज भी है। मनोविज्ञान का एकमात्र प्राश्रय मनोधातु है, अर्थात् अतीत विज्ञान है । पाँच विज्ञान कार्यों का श्राश्रय सहज भी है, अर्थात् यह विशन के पूर्व का और सहज दोनों है। वास्तव में पांच विधान-कायों का आश्रय द्विविध है--१. चक्षुरादि-हन्द्रिय जो विधान का सहभू है; २. मन-इन्द्रिय जो विधानोत्पत्ति के क्षण में श्रतीत होता है । चक्षुर्विज्ञान चक्षु और रूप पर आश्रित है । विज्ञान का आश्रय इन्द्रिय है, क्योंकि इन्द्रिय के विकार से विज्ञान में विकार होता है। इसलिए भी कि इन्द्रिय 'असाधारण है । एक पुद्गल का चक्षु केवल उस पुद्गल के चक्षुर्विज्ञानमात्र का श्राश्रय है। इसके विपरीत रूप साधारण है, क्योंकि रूप का ग्रहण चक्षुर्विज्ञान और मनोविज्ञान से होता है; एक पुद्गल और अन्य पुद्गल से होता है । श्रोत्र, प्राण, जिला, कायेन्द्रिय तथा शब्द, गन्ध, रस, स्पष्टव्य इन विषयों के लिए भी यही योजना होनी चाहिये । हम निष्कर्ष निकालते हैं कि विज्ञान का नाम इन्द्रिय से निर्दिष्ट होता है, क्योंकि उसका आश्रय इन्द्रिय है, क्योंकि इन्द्रिय असाधारण है । विषय के लिए ऐसा नहीं है । लोक में भेरी-शब्द, दण्ड-शब्द नहीं कहते, 'यवांकुर' कहते हैं, 'क्षेत्रांकुरा नहीं कहते । इन्द्रिय २१ इन्द्रिया--सूत्र में २२ इन्द्रियां उक्त -१. चक्षुरिन्द्रिय, २. श्रोत्रेन्द्रिय, ३. घाणेन्द्रिय, ४. निहन्द्रिय, ५. कायेन्द्रिय, ५. मन-इन्द्रिय, ७. पुरुषेन्द्रिय, ८. स्त्री-इन्द्रिय, ६. बीवितेन्द्रिय, १०. सुखेन्द्रिय, ११. दु.खेन्द्रिय, १२. सौमनस्येन्द्रिय, १३. दौर्मनस्योन्द्रय, १४. उपेचेन्द्रिय, १५. अदेन्द्रिय, १६. वीर्यन्द्रिय, १७. स्मृतीन्द्रिय, १८. समाधीन्द्रिय, १६. प्रशेन्द्रिय, २०. अनाजातमाजास्यामीन्द्रिय, २१. प्राजेन्द्रिय, २२. प्राजातातीन्द्रिय । बक्षण और उपपति-इस सूची में पडिन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य भी संग्रहीत है। जिसकी परमैश्वर्य की प्रवृत्ति होती है, वह इन्द्रिय कहलाता है । अत: सामान्यतः इन्द्रिय का अर्थ 'अधिपति है। प्रत्येक इन्द्रिय के आधिपत्य का विषय है।