पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४०१

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पंचदश अध्याय के अस्तित्व को सिद्ध करता है। संयुक्तागम [ ३११४ ] में है-रूपमनित्यमतीतमनागतम । सर्वास्तिवादी श्रागम-बचन को उद्धत फर युति देता है। बालंबन के होने पर विज्ञान की उत्पत्ति होती है । यदि बालंबन नहीं है, विज्ञान उत्पन्न नहीं होता। यदि अतीत और अना- गत वस्तु न होती तो बालंबन के बिना विज्ञान होता। अतः अालंबन के अभाव में विज्ञान न होगा। यदि अतीत नहीं है, तो शुभ-कर्म और अभि कम अनागत में फल को देता है ? वास्तव में विपक्ति-काल में विपाक-हेतु प्रतीत होता है। सर्वास्तिवादी निकाय के भेद सर्वास्तिवादी निकाय में चार नय -भावान्यथिक, लक्षणान्यथिक, अवस्थान्यथिक और अन्यथान्याथिक। १. भदन्त धर्मबात का पक्ष भागन्याय है, अर्थात् उनकी प्रतिज्ञा है कि तीन का अन्यथात्व भाव के अन्यत्ववश होता है । जब एक धर्म अवये दूसरे अध्व में गमन करता है, तब उसके द्रव्य का अन्यथात्व नहीं होता, किन्तु भाव का अन्यथाल होता है। यहां एक दृष्टान्त देते हैं, जो प्राकृति के अन्याय को प्रदर्शित कसा है:-सुवर्ण के भाण्ड को तोड़ कर उमका रूपान्तर करते हैं । सं थ... का अन्यथात्र होता है, वर्ण का नहीं । गुण के अन्यथात्व का दृष्टान्त ::-क्षीर से दधि होता है; सभ, अोज और पाक-क्रिया प्रहीण होते हैं, किन्तु वर्ग नहीं प्रहीण होता । हमी प्रकार जब अनागत धर्म अनागत से वर्तमान अध्न में प्रति- पद्यमान होता है, तो वह अनागत भाव का परित्याग करता है, और वर्तमान भाव का प्रतिलाम करता है, किन्तु द्रव्य का अनन्यत्व रहता है। जब यह वर्तमान से अतीत में प्रतियद्यमान हो तो वर्तमान भाव का त्याग और अतीत भाव का प्रतिनाभ होता है, किन्तु द्रव्य अनन्य रहता है । २. भदन्त धोका पन लनणान्ययात्व है। धर्म अपनों में प्रवर्तन करता है । जा यह अतीत होता है, तब यह अतीत के लक्षण से युक्त होता; किन्तु यह अनागत और प्रत्युत्पन्न लक्षणों से अधियुक्त रहता है । दि यह अनागत होता है, तो यह अनागत के लक्षणः से युक्त होता है, किन्तु अतीत और प्रत्युत्पन्न लक्षणों से अवियुक्त रहता है; यथा-एक स्त्री में रक्त पुरुष, शेष में अविरत रहता है। ३. भदन्त वसुभित्र का पक्ष श्रवस्थान्यथात्व है। अवस्था के अन्यथाल्व से श्रध्वों का अन्यथाल्व होता है । धर्म श्रध्वों में प्रतिमान होकर, अवस्था-अवस्था को प्राप्त होकर (प्राय), अवस्थान्तर से, द्रव्यान्तर से नहीं, अन्य अन्य निर्दिष्ट होता है; यथा-एकांक में निक्षिप्त एक गुलिका एक कहलाती है, दशांक में गिक्षिप्त दश,.." इत्यादि कहलाती है। ४. भदन्त बुद्धदेव का पक्ष अन्यथान्यथात्व है। अव अपेक्षावश व्यवस्थित होते। धर्म श्रध्व में प्रवर्तमान हो, अपेक्षावश संज्ञान्तर ग्रहण करता है; अर्थात् यह पूर्व और अपर की अपेक्षावश अतीत, अनागत, वर्तमान कहलाता है; यथा-एक ही स्त्री दुहिता भी है माता भी है।