पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३९५

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चतुर्दश मध्याय सिद्ध किया है, ये श्राख्याएं अपवर्ग, निःश्रेयस् के लिए. इन शास्त्रों में भी प्रयुक्त हुई है, किन्तु इन श्राख्यानों का व्याख्यान चैतन्यावस्था करके अचेतनावस्था ही किया गया है । जब न्याय-वैशेषिक के ग्रन्थ इस अवस्था को बढ़ावस्था मानते हैं, और उसे पापाण-निविशेष बताते हैं, तो अमृत आदि व्याख्याओं का सूत्रान्तों में एक भिन्न अर्थ लगाना उचित नहीं प्रतीत होता। निर्वाण बौद्ध-धर्म का लक्ष्य है। भगवान् ने कहा कि जिस प्रकार समुद्र का रस एकमात्र लवणरस है, उसी प्रकार मेरी शिक्षा का एकमात्र रस निर्वाण है । भगवान् की समस्त शिक्षा निर्वाण-प्रापक है। अत: निर्याण के संबन्ध में किसी प्रकार का भ्रम श्रावकों में नहीं रहा होगा। इस विषय में हम क्रमागत नाम्नाय को अधिक प्रामाणिक मानते हैं। निर्वाण के भेद हीनयान दो प्रकार का निर्वाण मानता है- सोपधिशेष-निर्वाण और निरुपधिशेष निर्वाण । पहली जीवन्मुक्त की अवस्था है। इस अवस्था में अईत् को शारीरिक दुःख भी होता है। दूसरा निर्वाण वह है, जिसमें मृत्यु के पश्चात् अर्हत का अवमान होता है। किन्तु महायान में एक अवस्था अधिक है, यह अप्रतिष्ठित-निर्वाण की अवस्था है, क्योंकि यद्यपि बुद्ध परिनिवृत हो चुके हैं, और विशुद्ध तथा परम शान्ति को प्राप्त हैं, तथापि वह शून्यता में विलीन होने के स्थान में संसरण करने वाले बाबा का रक्षा के निमित्त संसार के तट पर स्थित रहना चाहते हैं, किन्तु इससे उनको इसका भय नहीं रहता कि उनका विशुद्ध ज्ञान समल हो नायगा। इस अप्रांतात-निर्वाण का कल्पना इस कारण हुई कि बोधिसत्र महाकरुणा से प्रेरित है, क्योंकि उसने अपने ऊपर सत्या का मार लिया है, क्योंकि वह अपने से पराये को श्रेष्ठतर मानता है। इसलिए, अपन का 'संतप्त करक भा वह पराथ को साधित करता है। इसीलिए वह शून्यता में प्रवेश नहीं करता, और जावा का अथचया पार निःश्रयस् के लिए सतत उद्योग करता है । इस अपातात-निर्माण का उल्लख असंग के महायानसूत्रालंकार में मिलता है। महायान के अनुसार श्रावक-यान और प्रत्येक-बुद्धयान का लक्ष्य चरम निर्वाण नहीं है। इनके द्वारा महाश्रावक सोपधि-निरूधि-संज्ञक बोधिरूप का लाभ करता है, और भय से उत्त्रस्त हो आयु के क्षीण होने पर निर्वाण प्राप्त करता है। किन्तु वस्तुतः इनका निर्वाण प्रदीप-निर्वाण के तुल्य है। अभिसमयालंकारालोक [पृ० ११६-२०,1 में कहा है कि भावक और प्रत्येक-बुद्ध के लिए केवल धातुक जन्म का उपरम होता है, किन्तु वह अनासव-धातु में, अर्थात् परिशुद्ध बुद्ध-क्षेत्रों में कमलपत्रों में उत्पन्न होते हैं, और समाधि की अवस्था में वहीं अवस्थान करते हैं । तदनन्तर अमिताभ श्रादि बुद्ध अशिष्ट ज्ञान की हानि के लिए उनका प्रबोध करते है, और वह बोधिचित्त का ग्रहण कर लोकनायक बनते है। लकावतार में कहा है कि श्रावकयान से विमोक्ष नहीं होता, अन्त में उनका उद्योग महा- यान में पर्यवसित होता है। नागार्जुन ए.कयानवादी हैं; क्योंकि उनके मत में सब यानों का समवसरण एक महायान में होता है। इसका कारण यह है कि इनके विचार से मार्ग का